पंजाब केसरी लाला लाजपत राय का जीवन परिचय <<<
लाला लाजपत राय एक महान देशभक्त थे । उनका जन्म 28 जनवरी 1835 ईस्वी में पंजाब प्रांत के फिरोजपुर जिले के ढोडी ग्राम नामक स्थान में हुआ था !
उनके पिता मनसे राधाकिशन एक स्कूल में अध्यापक थे और इतिहास के बड़े अच्छे विद्वान थे ।
भारत के एक प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी थे। इन्हें पंजाब केसरी भी कहा जाता है। इन्होंने पंजाब नैशनल बैंक और लक्ष्मी बीमा कम्पनी की स्थापना भी की थी ये राय सिख बिरादरी के असली हीरो थे ! ये भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में गरम दल के तीन प्रमुख नेताओं लाल-बाल-पाल में से एक थे।
लाला लाजपत राय (28 जनवरी 1865 – 17 नवम्बर 1928 <<<
लाला लाजपत राय की प्रारंभिक शिक्षा लाहौर में हुई उनके हृदय में बचपन से ही भारत माता को अंग्रेजी शासक शिकंजे से मुक्त कराने की बड़ी तीव्र लालसा थी !
1886 ईस्वी में उन्होंने लाहौर में दयानंद एंग्लो वैदिक कॉलेज की स्थापना की 1986 में ब्रिटिश सरकार ने उनकी देशभक्ति के कारण देश से निर्वासित कर दिया ।
अतः वे अमेरिका चले गए वहां रहकर उन्होंने 1917 ईस्वी में “तरुण भारत या इंडिया” नामक पुस्तक लिखी थी।
अंग्रेज सरकार ने जप्त कर लिया । 1920 ईस्वी में वे भारत लौट आए और उन्हें कांग्रेस की विशेष अधिवेशन पर सभापति चुन कर सम्मानित किया गया 30 अक्टूबर 1928 एचडी को साइमन कमीशन के विरोध में लाहौर में एक विशाल जुलूस निकाला गया।
बैंकर, बीमाकर्मी और गरम दल के नेता <<<
उन्होंने अपनी आजीविका चलाने के लिए बैंकिंग का नवाचार किया. उस समय तक भारत में बैंक कोई बहुत अधिक लोकप्रिय नहीं थे, लेकिन उन्होंने इसे चुनौती की तरह लिया और पंजाब नेशनल बैंक तथा लक्ष्मी बीमा कंपनी की स्थापना की. दूसरी तरफ वे लगातार कांग्रेस के माध्यम से अंग्रेजों की खिलाफत करते रहे. अपनी निर्भिकता और गरम स्वभाव के कारण इन्हें पंजाब केसरी के उपाधी से नवाजा गया. बाल गंगाधर तिलक के बाद वे उन शुरूआती नेताओं में से थे, जिन्होंने पूर्ण स्वराज की मांग की. पंजाब में वे सबसे लोकप्रिय नेता बन कर उभरे !
आजादी के प्रखर सेनानी होने के साथ ही लाला जी का झुकाव भारत में तेजी से फैल रहे आर्य समाज आंदोलन की तरफ भी था. इसका परिणाम हुआ कि उन्होंने जल्दी ही महर्षि दयानंद सरस्वती के साथ मिलकर इस आंदोलन का आगे बढ़ाने का काम हाथ में ले लिया. आर्य समाज भारतीय हिंदू समाज में फैली कूरीतियों और धार्मिक अंधविश्वासों पर प्रहार करता था और वेदों की ओर लौटने का आवाहन करता था. लाला जी ने उस वक्त लोकप्रिय जनमानस के विरूद्ध खड़े होने का साहस किया. ये उस दौर की बात है जब आर्य समाजियों को धर्मविरोधी समझा जाता था, लेकिन लाला जी ने इसकी कतई परवाह नहीं की. जल्दी ही उनके प्रयासों से आर्य समाज पंजाब में लोकप्रिय हो गया.
उन्होंने दूसरा और ज्यादा महत्वपूर्ण कार्य भारतीय शिक्षा के क्षेत्र में किया. अभी तक भारत में पारम्परिक शिक्षा का ही बोलबाला था. जिसमें शिक्षा का माध्यम संस्कृत और उर्दू थे. ज्यादातर लोग उस शिक्षा से वंचित थे जो यूरोपीय शैली या अंग्रेजी व्यवस्था पर आधारित थी. आर्य समाज ने इस दिशा में दयानंद एंग्लो वैदिक विद्यालयों को प्रारंभ किया, जिसके प्रसार और प्रचार के लिए लाला जी ने हरसंभव प्रयास किए. आगे चलकर पंजाब अपने बेहतरीन डीएवी स्कूल्स के लिए जाना गया. इसमें लाला लाजपत राय का योगदान अविस्मरणीय रहा.
शिक्षा के क्षेत्र में उनकी दूसरी महत्वपूर्ण उपलब्धि लाहौर का डीएवी कॉलेज रहा. उन्होंने इस कॉलेज के तब के भारत के बेहतरीन शिक्षा के केन्द्र में तब्दील कर दिया. यह कॉलेज उन युवाओं के लिए तो वरदान साबित हुआ, जिन्होंने असहयोग आंदोलन के दौरान अंग्रेजों द्वारा संचालित कॉलेजों को धता बता दिया था. डीएवी कॉलेज ने उनमें से अधिकांश की शिक्षा की व्यवस्था की.
कांग्रेस और लाजपत राय <<<
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से जुड़ना लाला जी के जीवन की सबसे महत्वपूर्ण घटना थी. 1888 में कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन इलाहाबाद में हुआ और यह पहला अवसर था जब लाला लाजपत राय को इस संगठन से जुड़ने का अवसर मिला. अपने शुरूआती दिनों में ही उन्होंने एक उत्साही कार्यकर्ता के तौर पर कांग्रेस में पहचान बनानी शुरू कर दी. धीरे—धीरे वे कांग्रेस के पंजाब प्रांत के सर्वमान्य प्रतिनिधि मान लिए गए. 1906 में उनको कांग्रेस ने गोपालकृष्ण के साथ गए शिष्टमंडल का सदस्य बनाया. संगठन में उनके बढ़ते कद का यह परिचायक बनी. कांग्रेस में उनके विचारों के कारण उठापटक प्रारंभ हुई. वे बाल गंगाधर तिलक और विपिनचंद्र पाल के अलावा तीसरे नेता थे, जो कांग्रेस को अंग्रेजों की पिछलग्गू संस्था की भूमिका से ऊपर उठाना चाहते थे.
मांडले जेल यात्रा <<<
कांग्रेस में अंग्रेज सरकार की खिलाफत की वजह से वे ब्रिटिश सरकार की नजरों में अखरने लग गए. ब्रिटिशर्स चाहते थे कि उन्हें कांग्रेस से अलग कर दिया जाए, लेकिन उनका कद और लोकप्रियता देखते हुए, यह करना आसान नहीं था. 1907 में लाला लाजपत राय के नेतृत्व में किसानों ने अंग्रेज सरकार के खिलाफ आंदोलन शुरू कर दिया. अंग्रेज सरकार ऐसे ही मौके के तलाश में थी और उन्होंने लालाजी को न सिर्फ गिरफ्तार किया, बल्कि उन्हें देश निकाला देते हुए बर्मा के मांडले जेल में कैद कर दिया गया, लेकिन सरकार का यह दांव उल्टा पड़ गया और लोग सड़कों पर उतर आए. दबाव में अंग्रेज सरकार को फैसला वापस लेना पड़ा और लाला जी एक बार फिर अपने लोगों के बीच वापस आए.
कांग्रेस से अलगाव और होमरूल लीग <<<
1907 आते—आते लाला जी के विचारों से कांग्रेस का एक धड़ा पूरी तरह असहमत दिखने लगा था. लाला जी को उस गरम दल का हिस्सा माना जाने लगा था, जो अंग्रेज सरकार से लड़कर पूर्ण स्वराज लेना चाहती थी. इस पूर्ण स्वराज को अमेरिकी स्वतंत्रता संग्राम और प्रथम विश्व युद्ध से बल मिला और लाला जी भारत में एनीबेसेंट के साथ होमरूल के मुख्य वक्ता बन कर सामने आए. जलिया वाला बाग कांड ने उनमें अंग्रेज सरकार के खिलाफ और ज्यादा असंतोष भर दिया. इसी बीच कांग्रेस में महात्मा गांधी का प्रादुर्भाव हो चुका था और अंतरराष्ट्रीय पटल पर गांधी स्थापित हो चुके थे. 1920 में गांधी द्वारा चलाए गए असहयोग आंदोलन में उन्होंने बढ़—चढ़ कर हिस्सा लिया. उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया, लेकिन तबियत बिगड़ जाने पर उन्हें रिहा कर दिया गया. इसी बीच उनके संबंध लगातार कांग्रेस से बिगड़ते रहे और 1924 में उन्होंने कांग्रेस छोड़कर स्वराज पार्टी में शामिल हुए और केन्द्रिय असेम्बली के सदस्य चुने गये. यहां भी जल्दी ही उनका मन उचट गया और उन्होंने नेशलिस्ट पार्टी का गठन किया और एक बार फिर असेम्बली का हिस्सा बने.
साइमन गो बैक और दुखद मृत्यु<<<
भारत की आजादी की लड़ाई एक बड़ा वाकया उस वक्त घटित हुआ, जब भारतीयों से बात करने आए साइमन कमीशन का विरोध का फैसला गांधी द्वारा लिया गया. साइमन कमीशन जहां भी गया, वहां साइमन गो बैक के नारे बुलंद हुए. 30 अक्टूबर 1928 को जब कमीशन लाहौर पहुंचा, तो लाला लाजपत राय के नेतृत्व में एक दल शांतिपूर्वक साइमन गो बैक के नारे लगाता हुआ अपना विरोध दर्ज करवा रहा था. तभी अंग्रेज पुलिस ने उन पर लाठीचार्ज कर दिया और एक युवा अंग्रेज अफसर ने लालाजी के सर पर जोरदार प्रहार किया. लाला जी का कथन था— मेरे शरीर पर पड़ी एक—एक लाठी ब्रिटिश साम्राज्य के ताबूत में कील का काम करेगी.
सिर पर लगी हुई चोट ने लाला लाजपत राय का प्राणान्त कर दिया. उनकी मृत्यु से पूरा देश भड़क उठा. इसी क्रोध के परिणामस्वरूप भगतसिंह, शिवराम राजगुरु और सुखदेव थापर ने अंग्रेज पुलिस अधिकारी सांडर्स की हत्या की और फांसी के फंदे से झूल गए. लाला लाजपत राय भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के उन सेनानियों में से एक रहे जिन्होंने अपना सबकुछ देश को दे दिया. उनका जीवन ढेर सारे कष्टों और संघर्ष की महागाथा है, जिसे आने वाली पीढ़ीया युगों तक कहती—सुनती रहेंगी.
प्रारंभिक जीवन <<<
लाला लाजपत राय का जन्म 28 जनवरी 1865 को फ़िरोज़पुर जिले के धुडिके गाँव में मुंशी राधा कृष्ण आज़ाद और गुलाब देवी के यहाँ हुआ था. मुंशी आज़ाद फ़ारसी और उर्दू के विद्वान थे. लाला की माँ एक धार्मिक महिला थीं, जिन्होंने अपने बच्चों में मजबूत नैतिक मूल्यों को विकसित किया. उनके पारिवारिक मूल्यों ने लाजपत राय को विभिन्न विश्वासों और विश्वासों की स्वतंत्रता की अनुमति दी.
उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा गवर्नमेंट हायर सेकेंडरी स्कूल रेवाड़ी में प्राप्त की, जहाँ उनके पिता शिक्षक के रूप में पदस्थ थे. लाजपत राय ने लॉ की पढ़ाई के लिए 1880 में लाहौर के गवर्नमेंट कॉलेज में दाखिला लिया. कॉलेज में रहते हुए वे लाला हंस राज और पंडित गुरु दत्त जैसे देशभक्तों और भविष्य के स्वतंत्रता सेनानियों के संपर्क में आए. उन्होंने लाहौर के गवर्नमेंट कॉलेज से कानून की पढ़ाई की और उसके बाद हरियाणा के हिसार में अपनी कानूनी प्रैक्टिस शुरू की. बचपन से ही उन्हें अपने देश की सेवा करने की इच्छा थी और इसलिए उन्होंने इसे विदेशी शासन से मुक्त करने का संकल्प लिया. 1884 में उनके पिता का रोहतक में स्थानांतरण हो गया और लाला लाजपत राय साथ आ गए. 1877 में उन्होंने राधा देवी से शादी की.
1886 में परिवार हिसार में स्थानांतरित हो गया. जहां उन्होंने कानून का अभ्यास किया. राष्ट्रीय कांग्रेस के 1888 और 1889 वार्षिक सत्रों के दौरान, उन्होंने एक प्रतिनिधि के रूप में भाग लिया. वह 1892 में उच्च न्यायालय में अभ्यास करने के लिए लाहौर चले गए.
राष्ट्रवाद के उनके विचार <<<
लाला लाजपत राय एक जिज्ञासु पाठक थे और उन्होंने जो कुछ भी पढ़ा वह उनके दिमाग में एक बड़ी छाप छोड़ गया. वे इटली के क्रांतिकारी नेता ग्यूसेप माजिनी द्वारा उल्लिखित देशभक्ति और राष्ट्रवाद के आदर्शों से गहराई से प्रभावित थे. माज़िनी से प्रेरित होकर, लालाजी स्वतंत्रता प्राप्ति के क्रांतिकारी तरीके से प्रभावित हो गए. उन्होंने बिपिन चंद्र पाल, बंगाल के अरबिंदो घोष और महाराष्ट्र के बाल गंगाधर तिलक जैसे अन्य प्रमुख नेताओं के साथ मिलकर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कई नेताओं द्वारा वकालत की गई उदारवादी राजनीति के नकारात्मक पहलुओं को देखना शुरू किया. क्रमिक प्रगति के लिए कांग्रेस की मांग के लिए उन्होंने अपने मजबूत विरोध को आवाज दी और स्थिति को पूर्ण स्वतंत्रता या ‘पूर्ण स्वराज’ की आवश्यकता के रूप में देखा. व्यक्तिगत विचारों में वह अंतर-विश्वास सद्भाव में एक महान विश्वास था लेकिन उन्होंने कांग्रेस नेताओं द्वारा पार्टी के मुस्लिम वर्ग को खुश करने के लिए हिंदू हितों का त्याग करने की प्रवृत्ति के बारे में सही नहीं सोचा था.! लाला उन कुछ नेताओं में से एक थे जिन्होंने देश के हिंदुओं और मुसलमानों के बीच उपनिवेश-विरोधी संघर्ष की कठिनाइयों और धार्मिक संघर्ष के संभावित स्रोत का एहसास किया. द ट्रिब्यून में दिसंबर 14, 1923 को “मुस्लिम भारत और गैर-मुस्लिम भारत में एक स्पष्ट विभाजन” के लिए उनका प्रस्ताव, प्रमुख विवाद के साथ मिला!
राजनीतिक करियर <<<
लाजपत राय ने अपना कानूनी पेशा त्याग दिया और अपनी मातृभूमि को ब्रिटिश साम्राज्यवाद के चंगुल से मुक्त कराने की दिशा में अपना सारा प्रयास लगा दिया! उन्होंने भारत में ब्रिटिश शासन के अत्याचारी प्रकृति को उजागर करने के लिए दुनिया के प्रमुख देशों में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में मामलों की स्थिति को पेश करने की आवश्यकता को मान्यता दी. वह 1914 में ब्रिटेन और फिर 1917 में अमेरीका गए. अक्टूबर 1917 में उन्होंने न्यूयॉर्क में इंडियन होम रूल लीग ऑफ अमेरिका की स्थापना की. वह 1917 से 1920 तक अमेरीका में रहे!
1920 में अमेरिका से लौटने के बाद, लाजपत राय को कलकत्ता (अब कोलकाता) में कांग्रेस के विशेष सत्र की अध्यक्षता करने के लिए आमंत्रित किया गया था!. उन्होंने अंग्रेजों द्वारा किये गए जलियांवाला बाग हत्याकांड के विरोध में पंजाब में उग्र प्रदर्शन किया!. जब महात्मा गांधी ने 1920 में असहयोग आंदोलन शुरू किया तो उन्होंने पंजाब में इस आंदोलन का नेतृत्व किया!. जब गांधी ने आंदोलन चौरी चौरा कांड की घटना को स्थगित करने का फैसला किया तो लाजपत राय ने फैसले की आलोचना की और कांग्रेस स्वतंत्रता पार्टी का गठन किया.!
साइमन कमीशन ने 1929 में संवैधानिक सुधारों पर चर्चा करने के उद्देश्य से भारत का दौरा किया! यह तथ्य कि आयोग में केवल ब्रिटिश प्रतिनिधि शामिल थे एक भी भारतीय को इसमें जगह नहीं दी गयी थी. जिसने भारतीय नेताओं को बहुत नाराज किया! देश में विरोध के प्रदर्शन भड़क गये और लाला लाजपत राय इस तरह के प्रदर्शनों में सबसे आगे थे!
लालाजी उस जुलूस की अध्यक्षता कर रहे थे कि अंग्रेज पुलिस ने लाठीचार्ज कर जुलूस को तितर-बितर करना चाहा परंतु लालाजी टाटीबहार होने के बाद भी अपने स्थान से नहीं हटे एक कोरे सार्जेंट ने इन पर लाठी से प्रहार किया इसी लाठी की चोट के कारण 16 नवंबर 1998 को हम महापुरुष का शरीरांत हो गया।
मृत्यु के उपरांत उन्होंने कहा था । “”मेरे शरीर पर लगी एक-एक चोट ब्रिटिश साम्राज्य के शव आधार के लिए एक-एक की और कफन का एक-एक धागा होगा “”
वाकई में पंजाब के सिंह थे ।
अतः उन्हें पंजाब केसरी लाला लाजपत राय के नाम से जाना जाता है।
लाला लाजपत राय की मृत्यु <<<
30 अक्टूबर, 1928 को, लाला लाजपत राय ने लाहौर में साइमन कमीशन के आगमन का विरोध करने के लिए एक शांतिपूर्ण जुलूस का नेतृत्व किया!. मार्च को संबोधित करते हुए पुलिस अधीक्षक जेम्स ए सॉट ने अपने पुलिस बल को कार्यकर्ताओं पर लाठीचार्ज करने का आदेश दिया! पुलिस ने विशेष रूप से लाजपत राय को निशाना बनाया! इस कार्रवाई ने लाला लाजपत राय को गंभीर चोटों के साथ छोड़ दिया.!
17 नवंबर 1928 को दिल का दौरा पड़ने से उनकी मृत्यु हो गई! उनके अनुयायियों ने ब्रिटिश पर दोषारोपण किया और उनकी मृत्यु का बदला लेने की कसम खाई!. चंद्रशेखर आज़ाद ने भगत सिंह और अन्य साथियों के साथ मिलकर स्कॉट की हत्या की साजिश रची लेकिन क्रांतिकारियों ने जे.पी. सौन्डर्स को स्कॉट समझकर गोली मार दी.
लाला लाजपत राय ने अपने नेतृत्व क्षमता से न केवल अपने देशवासियों के मन में स्थायी छाप छोड़ी बल्कि शिक्षा, वाणिज्य और यहां तक कि स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराई! लालाजी दयानंद सरस्वती के अनुयायी थे और उन्होंने राष्ट्रवादी दयानंद एंग्लो-वैदिक स्कूल की स्थापना में मदद की! उन्होंने एक बैंक की स्थापना की जो
बाद में ‘पंजाब नेशनल बैंक’ के रूप में विकसित हुआ!
उन्होंने 1927 में अपनी मां गुलाबी देवी के नाम पर एक ट्रस्ट की स्थापना की थी.
लाला लाजपतराय जीवनी संक्षेप में<<<
अन्य नाम -लालाजी
जन्म – 28 जनवरी 1865
जन्म स्थान -धुडीके, पंजाब
पिता – मुंशी राधा कृष्ण आज़ाद
माता – गुलाब देवी
पत्नी – राधा देवी
बच्चे – अमृत राय, प्यारेलाल, पार्वती
शिक्षा – गवर्नमेंट कॉलेज, लाहौर से स्तानक
राजनीतिक – संघ भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, आर्य समाज आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन राजनीतिक विचारधारा राष्ट्रवाद, उदारवाद
प्रकाशन – द स्टोरी ऑफ़ माई डेपोर्टेशन (1908), आर्य समाज (1915), द
यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ़ अमेरिका- ए हिंदू इंप्रेशन (1916), यंग इंडिया (1916),
इंग्लैंड का भारत का ऋण-भारत (1917)
मृत्यु-17 नवंबर 1928