मंगल पाण्डेय का जन्म 30 जनवरी 1831 को संयुक प्रांत के बलिया जिले के नगवा गांव में हुआ था। इनके पिता का नाम दिवाकर पांडे तथा माता का नाम श्रीमती अभय रानी था। सामान्य ब्राह्मण परिवार में जन्म लेने के कारण युवावस्था में उन्हें रोजी-रोटी की मजबूरी में अंग्रेजों की फौज में नौकरी करने पर मजबूर कर दिया।
मंगल पांडे भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के अग्रदूत थे। उनके द्वारा भड़काई गई क्रांति की ज्वाला से अंग्रेज़ शासन बुरी तरह हिल गया। हालाँकि अंग्रेजों ने इस क्रांति को दबा दिया पर मंगल पांडे की शहादत ने देश में जो क्रांति के बीज बोए उसने अंग्रेजी हुकुमत को 100 साल के अन्दर ही भारत से उखाड़ फेका। मंगल पांडे ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के अंतर्गत 34वीं बंगाल नेटिव इन्फेंट्री में एक सिपाही थे। सन 1857 की क्रांति के दौरान मंगल पाण्डेय ने एक ऐसे विद्रोह को जन्म दिया जो जंगल में आग की तरह सम्पूर्ण उत्तर भारत और देश के दूसरे भागों में भी फ़ैल गया। यह भले ही भारत के स्वाधीनता का प्रथम संग्राम न रहा हो पर यह क्रांति निरंतर आगे बढ़ती गयी। अंग्रेजी हुकुमत ने उन्हें गद्दार और विद्रोही की संज्ञा दी पर मंगल पांडे प्रत्येक भारतीय के लिए एक महानायक हैं।
प्रारंभिक जीवन <<<
मंगल पाण्डेय का जन्म 30 जनवरी 1831 को संयुक प्रांत के बलिया जिले के नगवा गांव में हुआ था। इनके पिता का नाम दिवाकर पांडे तथा माता का नाम श्रीमती अभय रानी था। सामान्य ब्राह्मण परिवार में जन्म लेने के कारण युवावस्था में उन्हें रोजी-रोटी की मजबूरी में अंग्रेजों की फौज में नौकरी करने पर मजबूर कर दिया। वो सन 1849 में 22 साल की उम्र में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में शामिल हुए। मंगल बैरकपुर की सैनिक छावनी में “34वीं बंगाल नेटिव इन्फैंट्री” की पैदल सेना में एक सिपाही थे।
ईस्ट इंडिया कंपनी की रियासत व राज हड़प और फिर इशाई मिस्नरियों द्वारा धर्मान्तर आदि की नीति ने लोगों के मन में अंग्रेजी हुकुमत के प्रति पहले ही नफरत पैदा कर दी थी और जब कंपनी की सेना की बंगाल इकाई में ‘एनफील्ड पी.53’ राइफल में नई कारतूसों का इस्तेमाल शुरू हुआ तो मामला और बिगड़ गया। इन कारतूसों को बंदूक में डालने से पहले मुंह से खोलना पड़ता था और भारतीय सैनिकों के बीच ऐसी खबर फैल गई कि इन कारतूसों को बनाने में गाय तथा सूअर की चर्बी का प्रयोग किया जाता है। उनके मन में ये बात घर कर गयी कि अंग्रेज हिन्दुस्तानियों का धर्म भ्रष्ट करने पर अमादा हैं क्योंकि ये हिन्दू और मुसलमानों दोनों के लिए नापाक था।
भारतीय सैनिकों के साथ होने वाले भेदभाव से पहले से ही भारतीय सैनिकों में असंतोष था और नई कारतूसों से सम्बंधित अफवाह ने आग में घी का कार्य किया। 9 फरवरी 1857 को जब ‘नया कारतूस’ देशी पैदल सेना को बांटा गया तब मंगल पाण्डेय ने उसे लेने से इनकार कर दिया। इसके परिणाम स्वरूप उनके हथियार छीन लिये जाने व वर्दी उतार लेने का हुक्म हुआ। मंगल पाण्डेय ने उस आदेश को मानने से इनकार कर दिया और 29 मार्च सन् 1857 को उनकी राइफल छीनने के लिये आगे बढे अंग्रेज अफसर मेजर ह्यूसन पर आक्रमण कर दिया। इस प्रकार संदिग्ध कारतूस का प्रयोग ईस्ट इंडिया कंपनी शासन के लिए घातक सिद्ध हुआ और मंगल पांडेय ने बैरकपुर छावनी में 29 मार्च 1857 को अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह का बिगुल बजा दिया।
आक्रमण करने से पहले मंगल ने अपने अन्य साथियों से समर्थन का आह्वान भी किया था पर डर के कारण जब किसी ने भी उनका साथ नहीं दिया तो उन्होंने अपनी ही रायफल से उस अंग्रेज अधिकारी मेजर ह्यूसन को मौत के घाट उतार दिया जो उनकी वर्दी उतारने और रायफल छीनने को आगे आया था। इसके बाद पांडे ने एक और अँगरेज़ अधिकारी लेफ्टिनेन्ट बॉब को मौत के घात उतार दिया जिसके बाद मंगल पाण्डेय को अंग्रेज सिपाहियों ने पकड लिया। उन पर कोर्ट मार्शल द्वारा मुकदमा चलाकर 6 अप्रैल 1857 को फांसी की सजा सुना दी गयी। फैसले के अनुसार उन्हें 18 अप्रैल 1857 को फाँसी दी जानी थी, पर ब्रिटिश सरकार ने मंगल पाण्डेय को निर्धारित तिथि से दस दिन पूर्व ही 8 अप्रैल सन् 1857 को फाँसी पर लटका दिया।
ईस्ट इंडिया कंपनी की जुल्मी रियासत से जनता में शुरुआत से ही क्रूरता पैदा कर दी थी. बंगाल में ‘एनफील्ड पी.53’ राइफल में नई कारतूसों का इस्तेमाल शुरू होने से मामला और बिघड गया. इन कारतूसों को बंदूक में डालने से पहले मुंह से खोलना पड़ता था और भारतीय सैनिकों के बीच ऐसी खबर फैल गई कि इन कारतूसों को बनाने में गाय तथा सूअर की चर्बी का प्रयोग किया जाता है. भारतीयों के मन में भय था कि, अंग्रेज़ भारतीयों के धर्म को ठेस पहुँचाना चाहते है. इस घटना ने भारतीय लोगों के मन में ईस्ट इंडिया कंपनी के विरुद्ध और भी नफरत पैदा कर दी थी.
मंगल पांडेय के मन में असंतोष इतना उग्र था कि, 9 फरवरी 1857 को जब ‘नया कारतूस’ देशी पैदल सेना को बांटा गया तब मंगल पाण्डेय ने उसे लेने से इनकार कर दिया था. परिणामस्वरूप उनके हथियार छीन लेने का और वर्दी उतार लेने का फैसला किया गया. इस फैसले से मंगल पांडेय नाखुश थे, इसके चलते उन्होंने 29 मार्च 1857 को उनकी राइफल छीनने के लिये आगे बढे अंग्रेज अफसर मेजर ह्यूसन पर आक्रमण कर दिया.
उसके बाद मंगल पांडेय ने बैरकपुर छावनी में 29 मार्च 1857 को अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह किया. इस घटना के बाद उन्होंने फिर एक और अँगरेज़ अधिकारी लेफ्टिनेन्ट बॉब की हत्या कर दी. इसकी सजा के तौर पर कोर्ट द्वारा 6 अप्रैल 1857 को इन्हे फांसी की सजा सुना दी गयी थी. लेकिन, ब्रिटिश सरकार द्वारा मंगल पाण्डेय को निर्धारित तिथि से दस दिन पूर्व ही 8 अप्रैल सन् 1857 को फाँसी दे दी गयी
मंगल पांडे और भारत का पहला स्वतंत्रता संग्राम <<<
जैसा की पहले बताया जा चुका है कि भारत के लोगों में अंग्रेजी हुकुमत के प्रति विभिन्न कारणों से घृणा बढ़ती जा रही थी और मंगल पांडे के विद्रोह ने एक चिन्गारी का कार्य किया। मंगल द्वारा विद्रोह के ठीक एक महीने बाद ही 10 मई सन् 1857 को मेरठ की सैनिक छावनी में भी बगावत हो गयी और यह विद्रोह देखते-देखते पूरे उत्तरी भारत में फैल गया।
इस बगावत और मंगल पांडे की शहादत की खबर फैलते ही अंग्रेजों के खिलाफ जगह-जगह संघर्ष भड़क उठा। यद्यपि अंग्रेज इस विद्रोह को दबाने में सफल हो गए, लेकिन मंगल द्वारा 1857 में बोया गया क्रांति का बीज 90 साल बाद आजादी के वृक्ष के रूप में तब्दील हो गया।
इस विद्रोह (जिसे भारत का पहला स्वतंत्रता संग्राम भी कहा जाता है) में सैनिकों समेत अपदस्थ राजा-रजवाड़े, किसान और मजदूर भी शामिल हुए और अंग्रेजी हुकुमत को करारा झटका दिया। इस विद्रोह ने अंग्रेजों को स्पष्ट संदेश दे दिया कि अब भारत पर राज्य करना उतना आसान नहीं है जितना वे समझ रहे थे।
एक तरफ अंग्रेज़ी हुकूमत के खिलाफ इस समय भारतीयों के मन में घृणता बढ़ रही थी. और दूसरी तरफ मंगल पांडेय के पति लोगों में इतना सम्मान पैदा हो गया था कि बैरकपुर का कोई जल्लाद फ़ांसी देने को तैयार नहीं हुआ. नजीतन कल्कत्ता से चार जल्लाद बुलाकर मंगल पाण्डे को 8 अप्रेल, 1857 के दिन फ़ांसी पर चढा दिया गया था.
इस घटना ने इस घृणता को नया रूप दिया. इस घटना के एक महीने बाद ही 10 मई 1857 को मेरठ की छावनी में बगावत हो गयी. यह आग थोड़े ही समय बाद पूरे उत्तरी भारत में फैल गयी. इस घटना से अंग्रेज़ो को एक संदेशा मिला कि भारत पर हुकूमत चलाना इतना भी आसान कार्य नहीं है. इसके बाद ही हिन्दुस्तान में चौंतीस हजार सात सौ पैंतीस अंग्रेजी कानून यहाँ की जनता पर लागू किये गये ताकि मंगल पाण्डेय सरीखा कोई सैनिक दोबारा भारतीय शासकों के विरुद्ध बगावत न कर सके.
14 मई 1857 को गवर्नर जनरल लार्ड वारेन हेस्टिंगज ने मंगल पाण्डे का फ़ांसी नामा अपने आधिपत्य में ले लिया. सन 1905 के बाद जब लार्ड कर्जन ने उडीसा, बंगाल, बिहार और मध्य प्रदेश की थल सेनाओं का मुख्यालय बनाया गया तो मंगल पाण्डे का फ़ांसीनामा जबलपुर स्थान्तरित कर दिया गया. जबलपुर के सेना आय्ध कोर के संग्राहलय में मंगल पाण्डे का फ़ांसीनाम आज भी सुरक्षित रखा है.
आधुनिक युग में मंगल पांडे <<<
मंगल पांडे के जीवन के पर फिल्म और नाटक प्रदर्शित हुए हैं और पुस्तकें भी लिखी जा चुकी हैं। सन 2005 में प्रसिद्ध अभिनेता आमिर खान द्वारा अभिनित ‘मंगल पांडे: द राइजिंग’ प्रदर्शित हुई। इस फिल्म का निर्देशन केतन मेहता ने किया था। सन 2005 में ही ‘द रोटी रिबेलियन’ नामक नाटक का भी मंचन किया गया। इस नाटक का लेखन और निर्देशन सुप्रिया करुणाकरण ने किया था।
जेडी स्मिथ के प्रथम उपन्यास ‘वाइट टीथ’ में भी मंगल पांडे का जिक्र है।
सन 1857 के विद्रोह के पश्चात अंग्रेजों के बीच ‘पैंडी’ शब्द बहुत प्रचलित हुआ, जिसका अभिप्राय था गद्दार या विद्रोही।
भारत सरकार ने 5 अक्टूबर 1984 में मंगल पांडे के सम्मान में एक डाक टिकट जारी किया।
मंगल पांडे ने कौन सा नारा दिया था? <<<
मारो फिरंगी को’ नारा देने वाले क्रांतिकारी मंगल पांडे का जन्म 19 जुलाई 1827 को हुआ था ।
बैरकपुर में सैनिक विद्रोह कब हुआ था?<<<
ईस्ट इंडिया कंपनी के सिपाही मंगल पांडे ने बैरकपुर में ही 29 मार्च 1857 को एक अँग्रेज़ अफ़सर पर गोली चलाई और अपने साथियों से बग़ावत करने की अपील की. इस घटना को ही 1857 के विद्रोह की शुरुआत माना जाता है
मंगल पांडे क्यों प्रसिद्ध है? <<<
मंगल पाण्डेय एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थे जिन्होंने 1857 में भारत के प्रथम स्वाधीनता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वे ईस्ट इंडिया कंपनी की ३४वी बंगाल इंफेन्ट्री के सिपाही थे। तत्कालीन अंग्रेजी शासन ने उन्हें बागी करार दिया जबकि आम हिंदुस्तानी आज भी उन्हें आजादी की लड़ाई के नायक के रूप में सम्मान देता है।
मंगल पांडे ने कहा विद्रोह किया <<<
लेकिन अंग्रेजों को डर था कि पांडे द्वारा फूंका गया बिगुल जल्द ही आग की तरह पूरे हिंदुस्तान में फैल जाएगा. विद्रोह की चिंगारी मेरठ की छावनी पहुंच गई थी. 10 मई 1857 को भारतीय सैनिकों ने मेरठ की छावनी में बगावत कर दी.
अंग्रेजों के प्रति विद्रोह <<<
ये वो वक्त था जब ईस्ट इंडिया कंपनी के अत्याचार से भारत प्रताड़ित था, भारतीयों के अंदर दबी जुबान से अंग्रेजों के खिलाफ विरोध के बिगुल फूट चुके थे लेकिन ये आक्रोश तब फूटा जब कंपनी की सेना की बंगाल इकाई में ‘एनफील्ड पी.53’ राइफल में नई कारतूसों का इस्तेमाल शुरू हुआ। इन कारतूसों को बंदूक में डालने से पहले मुंह से खोलना पड़ता था और भारतीय सैनिकों के बीच ऐसी खबर फैल गई कि इन कारतूसों को बनाने में गाय तथा सूअर की चर्बी का प्रयोग किया जाता है। उनके मन में ये बात घर कर गयी कि अंग्रेज हिन्दुस्तानियों का धर्म भ्रष्ट करने पर अमादा हैं क्योंकि ये हिन्दू और मुसलमानों दोनों के लिए नापाक था।
मंगल पांडे को कब और क्यों फांसी दी गई? <<<
ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ क्रांति की शुरुआत करने वाले मंगल पांडे ने बैरकपुर में 29 मार्च 1857 को अंग्रेज अफसरों पर हमला कर घायल कर दिया था. कोर्ट मार्शल के बाद उन्हें 18 अप्रैल 1857 को फांसी देनी तय की गई थी लेकिन हालत बिगड़ने की आशंका के चलते अंग्रेजों ने गुपचुप तरीके से 10 दिन पहले उन्हें फंदे पर लटका दिया।
योगदान <<<
भारत में मंगल पांडेय एक महान क्रांतिकारी के रूप में जाने जाते है. उन्होंने ब्रिटिश हुकूमत को ठुकराया था. मंगल पांडेय ने ब्रिटिशों द्वारा भारतीयों के साथ होने वाले नीच बर्ताव के खिलाफ आवाज़ उठाई. वे पहले स्वतंत्रता क्रांतिकारी थे जिन्होंने सबसे पहले ब्रिटिश कानून का विरोध किया था. उन्होंने आज़ादी की लड़ाई की चिंगारी भारत में लगाई थी जिसने बाद में एक भयंकर रूप धारण कर लिया था. यह लड़ाई तब तक ख़तम नहीं हुई, जब तक अंग्रेज़ भारत से निकल नहीं गए. भारतीय स्वनतन्त्रता संग्राम में उनके महत्वपूर्ण योगदान के सन्मान में भारत सरकार द्वारा 1984 में एक डाक टिकट जारी किया गया.
मंगल पांडे की मृत्यु क्यों कब <<<
29 मार्च 1857 को मंगल पांडे ने दो ब्रिटिश अफसरों पर हमला किया। जिसके बाद मंगल पांडे पर मुकदमा चलाया गया। जिसके बाद 6 अप्रैल 1857 को मंगल पांडे को कोर्ट मार्शल कर दिया गया और उन्हें 8 अप्रैल को फांसी दे दी गई।
नाम – मंगल पाण्डेय
जन्म – 30 जनवरी 1831
स्थान – नगवा गांव, बलिया जिला
माता – श्रीमती अभय रानी
पिता – दिवाकर पांडे
मृत्यु – 8 अप्रैल 1857
स्थान – बैरकपुर, पश्चिम बंगाल
कार्य: सन् 1857 के प्रथम भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के अग्रदूत ।