Biography of Birsa Munda

>>>™बिरसा मुंडा का जीवन परिचय <<<

हमारी भारत माता वीरों को जन्म देने वाली है झारखंड राज्य का छोटानागपुर क्षेत्र पहाड़ियों और जंगलों से परिपूर्ण है यहां के निवासी स्वभाव से सरल प्रकृति प्रेमी तथा हिंदू संस्कृति के प्रति निष्ठावान हैं किंतु आर्थिक और सामाजिक दृष्टि से अत्यंत गरीब थे !

ईसाई मिशनरियों ने इनकी गरीबी का लाभ उठाकर तथा उन्हें आर्थिक लालच देकर ना केवल उनको इसाई बनाना प्रारंभ किया वरन उन्हें अंग्रेजी राज का भक्त बनाना भी शुरू किया !

बिरसा के पिता सुगना भी अत्यंत गरीब थे अपनी गरीबी से उबर कर इस आयोग के प्रलोभन में आकर यह भी ईसाई बन गए परंतु इनकी आर्थिक स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं हुआ अतः यह पुनः हिंदू धर्म में लौट आये !

बिरसा बाल्यकाल से ही अत्यंत मेधावी थे तथा उन्हें पढ़ने की तीव्र लालसा थी बकरियां चराते हुए भी अपनी उंगलियों से जमीन पर कुछ ना कुछ लिखा करते थे ! बिरसा मुंडा एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी और एक आदिवासी नेता थे जिन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ विद्रोह किया था !

वह एक दूरदर्शी थे जिन्होंने अपने समुदाय, आदिवासी लोगों की मुक्ति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई , जो ब्रिटिश शोषणकारी नीतियों और अत्याचारों के लगातार पीड़ित थे , युवा अवस्था में जब बिरसा काम की तलाश में एक स्थान से दूसरे स्थान पर यात्रा कर रहे थे तब उन्होंने अनुभव किया कि, उनका समुदाय ब्रिटिश उत्पीड़न के कारण पीड़ित था इसने उन्हें विभिन्न मामलों की समझ प्रदान की , इस तथ्य को महसूस करने के बाद कि ब्रिटिश कंपनी भारत में लोगों पर अत्याचार करने और धन को विदेश ले जाने के लिए पहुंची !

बिरसा मुंडा ने ब्रिटिशों के एजेंडे को उजागर करने के लिए जागरूकता फैलाना शुरू किया और अपनी आदिवासियों की सेना को इकट्ठा किया , सेना ने ब्रिटिश राज के अन्याय और विश्वासघात के खिलाफ आंदोलनों और विरोध का जवाब दिया , वह विद्रोह में एक सक्रिय भागीदार थे और उन्हें एक अथक सेनानी के रूप में याद किया जाता है , जिसने अंग्रेजों से लड़ने का साहस रखा !

बिरसा मुंडा ने खुद को सर्वशक्तिमान का संदेशवाहक होने का दावा किया और अपने अनुयायियों से कहा कि वे एक ईश्वर की अवधारणा का पालन करें. उनके प्रभावशाली व्यक्तित्व और प्रेरक भाषणों ने जनता को स्वतंत्रता की शक्ति में विश्वास करने के लिए प्रोत्साहित किया. आदिवासियों के पूर्ण स्वामित्व अधिकारों की बहाली के उनके प्रयासों ने उनके नेतृत्व और दृष्टि को मिसाल दी !

>>> बिरसा मुंडा का प्रारंभिक जीवन <<<

बिरसा मुंडा का जन्म मुंडा जनजाति के गरीब परिवार में 15 नवंबर, 1875 को उलीहातू गांव में झारखंड के खूंटी जिले में हुआ था !

इनके पिता सुगना मुंडा, एक खेतिहर मजदूर, और उनकी माता कर्मी हाटू थी , वह परिवार के चार बच्चों में से एक थे , बिरसा मुंडा का एक बड़ा भाई, कोमता मुंडा और दो बड़ी बहनें, डस्कीर और चंपा थी !

बिरसा का रिवार मुंडा के नाम से पहचाने जाने वाले जातीय आदिवासी समुदाय से था और चक्कड़ में बसने से पहले, दूसरे स्थान पर चले गए, जहाँ उन्होंने अपना बचपन बिताया ,कम उम्र से उन्होंने बांसुरी बजाने में रुचि विकसित की , गरीबी के कारण वह अपने मामा के गाँव अयूबतु में ले जाया गया , जहाँ वे दो साल तक रहे !

बिरसा की सबसे छोटी मौसी जौनी की शादी खटंगा में हो गई, वह उन्हें अपने साथ खटंगा के नए घर में ले आई.बिरसा मुंडा ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा मामा के घर हुई सलगा के एक स्कूल से प्राप्त की, जो जयपाल नाग द्वारा संचालित था !

कुशाग्र छात्र होने के नाते उन्हें जयपाल नाग ने जर्मन मिशन स्कूल में पढ़ने के लिए मनाया था इसलिए, उन्हें बिरसा डेविड के रूप में ईसाई धर्म में परिवर्तित किया गया और स्कूल में दाखिला लिया गया , इसके पश्चात मुर्मू ने मिशन में प्राथमिक शिक्षा पूर्ण कर जर्मन मिशन द्वारा संचालित चाईबासा मिशन स्कूल में पढ़ने गए और वहीं उन्होंने प्रवेशिका स्तर तक की शिक्षा पाई , उन्होंने कुछ वर्ष पढाई पूरी होने तक इसी स्कूल में अध्ययन किया !

बिरसा विद्यालय के कार्यक्रम अनुशासित रीति से करते थे और घर आकर बजरंगबली के मंदिर में हनुमान चालीसा का पाठ कर अपने अंतःकरण की शुद्धि कर लिया करते थे !

युवा होने पर भी अपने समाज बंधुओं की दरिद्रता, अशिक्षा रोग शोक से परित्राण दिलाने और सामाजिक सेवा कार्य के लिए सामाजिक सुधार में संलग्न हुए प्रचलित स्वदेशी चिकित्सा पूजा-पाठ और सेवा परायणता से उन्होंने लोगों का दिल जीत लिया तथा लोग उनके अनुयाई होने लगे उन्होंने वनवासियों को शराब खोरी की बुरी लत से तथा अंधविश्वास से मुक्ति दिलाने का सराहनीय प्रयत्न किया उन्होंने विविध देवी देवताओं तथा भूत प्रेत की पूजा के स्थान पर एक ईश्वर की आराधना का उपदेश दिया उनके अनुयाई उनके उपदेश के अनुसार यगोपवित धारण करते तथा गौ सेवा का व्रत लेते हुए मांस मछली का भक्षण और मदीरा, पान को ताजिया मानते हैं !

झूठ नहीं बोलते चोरी नहीं करते तथा ईसाई लड़कियों से विवाह नहीं करते हैं वनवासियों की निस्वार्थ सेवा करने के कारण विशाखा यस चारों ओर फैल गया वनवासी उनके प्रति अगाध श्रद्धा रखने लगे इस सरकार इस प्रकार से तू विरसा के अनुयाई का एक सुदृढ़ संगठन खड़ा हो गया और अंग्रेज सरकार विश्व की प्रसिद्ध और उनके संगठन से भयभीत हो गई इस आई पादरी के धर्मांतरण कार्य में भी विरसा के कार्य अवरोध बन गए इस प्रकार अंग्रेज सरकार और ईसाई पादरी दोनों ही मिर्चा की आंखों में विरसा किरकिरी बन गए क्योंकि उनका संगठन स्वधर्म और अपनी संस्कृति के लिए समर्पित था।

>> बिरसा मुंडा की बड़ी बहन का नाम क्या है <<<

कुरुम्बडा में, बिरसा के बड़े भाई, कोमटा और उनकी बहन, दासकिर का जन्म हुआ। वहां से परिवार बंबा चला गया जहां बिरसा की बड़ी बहन चंपा का जन्म हुआ। बिरसा के प्रारंभिक वर्ष उनके माता-पिता के साथ चलकड़ में व्यतीत हुए। उनका प्रारंभिक जीवन एक औसत मुंडा बच्चे से बहुत अलग नहीं हो सकता था !

>>>बिरसा मुंडा ने कौन सा नारा दिये थे <<<

” एक तीर एक कमान सभी आदिवासी एक समान “”

>>> बिरसा मुंडा का संघर्ष <<<

1886 से 1890 तक बिरसा मुंडा का परिवार चाईबासा में रहता था, जो सरदार विरोधी गतिविधियों के प्रभाव में आया था. वह भी इस गतिविधियों से प्रभावित थे और सरदार विरोधी आंदोलन को समर्थन देने के लिए प्रोत्साहित किया गया था !

1890 में उनके परिवार ने सरदार के आंदोलन का समर्थन करने के लिए जर्मन मिशन में अपनी सदस्यता छोड़ दी.बाद में उन्होंने खुद को पोरहत क्षेत्र में संरक्षित जंगल में मुंडाओं के पारंपरिक अधिकारों पर लागू किए गए अन्यायपूर्ण कानूनों के खिलाफ लोकप्रिय आंदोलन आंदोलन में शामिल किया !

1890 के दशक की शुरुआत में, उन्होंने भारत के कुल नियंत्रण हासिल करने के लिए ब्रिटिश कंपनी की योजनाओं के बारे में आम लोगों में जागरूकता फैलाना शुरू किया !

बिरसा मुंडा एक सफल नेता के रूप में उभरे और कृषि टूटने और संस्कृति परिवर्तन की दोहरी चुनौती के खिलाफ विद्रोह किया. उनके नेतृत्व में, आदिवासी आंदोलनों ने गति प्राप्त की और अंग्रेजों के खिलाफ कई विरोध प्रदर्शन किए गए !

आंदोलन ने दिखाया कि आदिवासी मिट्टी के असली मालिक थे और बिचौलियों और अंग्रेजों को खदेड़ने की भी मांग की.अंततः उनके अचानक निधन के बाद आंदोलन समाप्त हो गया. लेकिन यह उल्लेखनीय रूप से महत्वपूर्ण था क्योंकि इसने औपनिवेशिक सरकार को कानूनों को लागू करने के लिए मजबूर किया ताकि आदिवासी लोगों की भूमि को डिकस (बाहरी लोगों) द्वारा आसानी से दूर नहीं किया जा सके !

यह आदिवासी समुदाय की ताकत और ब्रिटिश राज के पूर्वाग्रह के खिलाफ खड़े होने वाले साहस आदिवासियों की ताकत का भी प्रतीक था !

युवा अवस्था में जब बिरसा काम की तलाश में एक स्थान से दूसरे स्थान पर यात्रा कर रहे थे तब उन्होंने अनुभव किया कि, उनका समुदाय ब्रिटिश उत्पीड़न के कारण पीड़ित था इसने उन्हें विभिन्न मामलों की समझ प्रदान की !

इस तथ्य को महसूस करने के बाद कि ब्रिटिश कंपनी भारत में लोगों पर अत्याचार करने और धन को विदेश ले जाने के लिए पहुंची !

बिरसा मुंडा ने ब्रिटिशों के एजेंडे को उजागर करने के लिए जागरूकता फैलाना शुरू किया और अपनी आदिवासियों की सेना को इकट्ठा किया !

सेना ने ब्रिटिश राज के अन्याय और विश्वासघात के खिलाफ आंदोलनों और विरोध का जवाब दिया वह विद्रोह में एक सक्रिय भागीदार थे और उन्हें एक अथक सेनानी के रूप में याद किया जाता है जिसने अंग्रेजों से लड़ने का साहस रखा.बिरसा मुंडा ने खुद को सर्वशक्तिमान का संदेशवाहक होने का दावा किया और अपने अनुयायियों से कहा कि वे एक ईश्वर की अवधारणा का पालन करें !

उनके प्रभावशाली व्यक्तित्व और प्रेरक भाषणों ने जनता को स्वतंत्रता की शक्ति में विश्वास करने के लिए प्रोत्साहित किया. आदिवासियों के पूर्ण स्वामित्व अधिकारों की बहाली के उनके प्रयासों ने उनके नेतृत्व और दृष्टि को मिसाल दी !

>>> बिरसा मुंडा की मृत्यु <<<

3 मार्च 1900 को बिरसा की आदिवासी छापामार सेना के साथ मकोपाई वन (चक्रधरपुर) में ब्रिटिश सैनिकों द्वारा गिरफ्तार किया गया था. 9 जून 1900 को रांची जेल में 25 वर्ष की आयु में उनकी मृत्यु हो गई, जहाँ उन्हें कैद कर लिया गया था. ब्रिटिश सरकार ने घोषणा की कि उनकी मृत्यु हैजा से हुई हैं, हालांकि सरकार ने बीमारी के कोई लक्षण नहीं दिखाए. अफवाहों ने हवा देते हुए कहा कि शायद उन्हें जहर दिया गया था.

>>> स्मारक (Memorials)<<<

इस क्रांतिकारी को सम्मानित करने के लिए, कई संस्थानों / कॉलेजों और स्थानों का नाम उनके नाम पर रखा गया है. कुछ प्रमुख हैं ‘बिरसा इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी’, ‘बिरसा कृषि विश्वविद्यालय’, ‘बिरसा मुंडा एथलेटिक्स स्टेडियम’ और ‘बिरसा मुंडा एयरपोर्ट’ आदि हैं !

>>> बिंदु-जानकारी (Information)<<<

नाम -बिरसा मुंडा

जन्म -15 नवम्बर 1875

जन्म स्थान – उलीहातू, खूंटी (झारखंड)

पिता का नाम – सुगना मुंडा

माता का नाम – कर्मी हाटू मुंडा

प्रसिद्धी कारण – क्रांतिकारी

विवाह स्थिति – अविवाहित

मृत्यु – 9 जून 1900 ई.

मृत्यु कारण – हैजा

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