जगदीश चन्द्र बोस का जीवन परिचय <<<
हमारे देश में प्राचीन काल से ही महान वैज्ञानिकों की परंपरा चली आ रही है जिसमें आर्यभट्ट वराह मिहिर भास्कर आचार्य नागार्जुन आदि के नाम विशेष प्रसिद्ध है हमारा देश ज्ञान विज्ञान में इतना बड़ा चढ़ा था कि संसार को अंको का ज्ञान हम ने ही दिया दुश्मनों की प्रणाली यहीं से चली ज्योतिष का नाम यहीं से विश्व में फैला वर्तमान युग में भी सर जगदीश चंद्र बसु सरीखे वैज्ञानिक हुए हैं जिन्होंने अपने आविष्कारों से संपूर्ण विश्व में तहलका मचा दिया था
भारत के महान वैज्ञानिक जगदीश चंद्र बोस के बारे में भला कौन नहीं जनता। जगदीश चंद्र बोस साहब को जगदीश चन्द्र बसु भी कहते हैं। बहुमुखी प्रतिभा के धनी जगदीश चन्द्र बसु असाधारण ब्यक्ति थे।
जगदीश चंद्र बोस ने दुनियाँ को पहली वार बताया की पौधे में भी जान होती है। उन्हें भी दर्द का अहसास होता है। उन्होंने दुनियाँ को पहली बार सिद्ध करके दिखाया की पेड़-पौधे भी उत्तेजनाओं का अनुभव करते हैं।
उन्हें भी सर्द-गर्म, प्रकाश और सुख दुख का अहसास होता है। पेड़-पौधे भी संगीत सुनकर झूमते हैं। उन्होंने दिखाया की जहर का प्रभाव केवल प्राणी मात्र पर ही नहीं बल्कि पेड़-पौधे में भी होता है।
उन्होंने पेड़-पौधे की संवेदनशीलता प्रदर्शन के लिए क्रेस्कोग्राफ नामक एक यंत्र का आविष्कार किया। उनके प्रतिभा को देखते हुए महान नोबेल पुरस्कार वैज्ञानिक सर नेविल मोट ने कहा था।
सर जगदीशचंद बसु अपने समय से कम से कम 60 साल आगे की सोच रखते थे। सर्वप्रथम उन्होंने ही रेडियो और माइक्रो-वेब (सूक्ष्म तरंगों) के बारे में दुनियाँ को अवगत कराया।
कुछ वैज्ञानिक रेडियो के वास्तविक आविष्कारक मार्कोनी को नहीं बल्कि सर जगदीशचंद्र बोस मानते हैं। अद्भुत प्रतिभा के धनी वसु साहब वनस्पति विज्ञान, जीव विज्ञान, भौतिकी और पुरातत्व विज्ञान में निपुण थे।
मेधनाथ साहा तथा सतेन्द्र नाथ बोस जैसे महान वैज्ञानिक जगदीश चंद्र बसु के शिष्य थे।आगे हम जानेंगे की जगदीश चन्द्र बोस का जन्म कब और कहाँ हुआ था। तो चलिये जानते हैं.
महान वैज्ञानिक जगदीश चन्द्र बसु <<<
डॉ. जगदीश चंद्र बसु का जन्म 30 नवंबर 1858 ईस्वी में अखंड भारत के ढाका में हुआ था। कहते हैं की जगदीश चंद्र बसु का जन्म वर्तमान बांग्लादेश की राजधानी ढाका से थोड़ी दूर मुंशीगंज जिले के विक्रमपुर गाँव में हुआ था।
वे सेंट जेवियर कॉलेज से 16 वर्ष की आयु में एंट्रेस की परीक्षा में प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण हुए इनकी विदेश जाकर पढ़ने की बड़ी इच्छा थी परंतु पिता की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी इनका दृढ़ निश्चय देखकर इनकी माँ ने घर का खर्च कम करके इन्हे इंग्लैंड पढ़ने भेज दिया । इंग्लैंड जाकर इन्होंने 1884 ईस्वी में लंदन विश्वविद्यालय से प्रथम श्रेणी में बी.एस.सी. की परीक्षा उत्तरण की और भारत आकर कोलकाता के प्रेसिडेंसी कॉलेज में सहायक प्रोफेसर हो गए ।
उनका बचपन अपने ही गाँव विक्रमपुर में बीता। जगदीश चंद्र बसु की माता का नाम बामासुंदरी तथा उनके पिता का नाम भगवानचंद बसु था। भगवानचंद बसु ब्रिटिश सरकार में एक सरकारी अधिकारी के रूप में मजिस्ट्रेट के पद पर कार्यरत थे।
जगदीश चंद्र बसु अपने माता-पिता के एकलौते संतान थे। उन्हें पाँच बहने थी। बसु साहब का लालन पालन बड़े ही सुख-सुविधाओं के बीच हुआ। बचपन से ही जगदीश चंद्र बसु प्रकृति प्रेमी थे। उन दिनों हमारे देश में अंग्रेजों का राज्य था और अंग्रेज अधिकारी भारतीयों को सदैव नीचा दिखाने की कोशिश करते रहते थे जगदीश चंद्र बसु भी भारतीय थे इसलिए उन्हें अंग्रेज अध्यापकों की तुलना में दो तिहाई वेतन कम हो जाता था वह कट्टर देशभक्त थे इसलिए उन्होंने निरंता से इस भेद नीति का विरोध किया भारतीयों के लिए अपमान का बदला लेने के लिए उन्होंने यह निश्चय किया कि जब तक उन्हें पूरा वेतन नहीं मिलेगा तब तक वे वेतन का एक पैसा भी ग्रहण नहीं करेंगे और कॉलेज में निशुल्क पढ़ाएंगे।
उनकी आर्थिक स्थिति बड़ी दयनीय थी उनके पास पैसे की इतनी कमी थी कि वे कलकत्ते में मकान ना ले लेकर नदी के उस पार चंद्र नगर में एक सस्ता मकान किराए पर लेकर रहते थे ।
वहां से यह स्वयं एक छोटी सी नाव केकर नदी पार कर कोलकाता आते थे। और नाव को उनकी पत्नी वापस ले जाया करती थी अंत में अंग्रेज अधिकारियों को इनके दृढ़ निश्चय के सम्मुख झुकना पड़ा और भारतीयों के साथ भेदभाव की नीति समाप्त करनी पड़ी ।
यह प्रथम वैज्ञानिक थे जिन्होंने सर्वप्रथम बेतार के तार वायरलेस का आविष्कार किया परंतु एक गुलाम देश के नागरिक होने के कारण इन्हें यह श्रेय नहीं दिया गया ।
इनका सबसे बड़ा आविष्कार या है कि उन्होंने पहली बार यह सिद्ध किया कि संसार की सभी पदार्थों में एक ही जीवन प्रवाहित हो रहा है। और संसार के सभी पदार्थ सचेतन है। इन्होंने प्रयोगों द्वारा यह सिद्ध कर दिया कि मनुष्यों की तरह पेड़ पौधों में भी जीवन का स्पंदन है।
इन्होंने एक ऐसा यंत्र तैयार किया जिससे पौधे के हृदय की धड़कन उनकी वृक्ष का अपने आप लेखन तथा दुख एवं कष्ट होने पर उनका रोना सुना जा सकना संभव हो गया।
इस अविष्कार पर ब्रिटिश सरकार ने उन्हें सर की उपाधि तथा कोलकाता विश्वविद्यालय ने डॉक्टरेट की उपाधि से सम्मानित किया ।
23 नवंबर सन 1936 ईस्वी में मैं 78 वर्ष की आयु में अपनी यह लोग की लीला समाप्त की ।
हमारे देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद उनके प्रिय शिष्यों में से थे।
मृत्यु के पूर्व इन्होंने अपने आय की बहुत बड़ी राशि डॉ राजेंद्र प्रसाद को बिहार के कोयला क्षेत्र में शराब बंदी के लिए दान में दे दी थी ।
30 नवंबर को उनके जन्मदिन पर हमें इनके पवित्र कार्यों का स्मरण कर उनके जीवन का अनुकरण करने का संकल्प लेना चाहिए ।
वैवाहिक जीवन <<<
उनके माता पिता जीते जी अपने एकलौते पुत्र की शादी कर पुत्र बधू को देखना चाहते थे। इस प्रकार डॉ. जगदीशचंद बसु की शादी का रिश्ता उनके पिता के दोस्त की बेटी के साथ पक्का हुआ। फलतः जगदीशचंद बसु की शादी सन 1887 ईस्वी में अबला देवी के साथ सम्पन्न हुई।
उस बक्त अबला देवी मद्रास मेडिकल कॉलेज की छात्रा थी। अबला देवी एक आदर्श नारी थी। शादी के बाद घर का सारा काम अपने ऊपर ले लिया। इस प्रकार बसु साहब का वैवाहिक जीवन बड़ा ही सुखमय और शांतिपूर्ण ढंग से बीता !
डॉ. जगदीश चन्द्र बसु की शिक्षा <<<
बचपन से ही बसु साहब के अंदर धार्मिक पुस्तक रामायण और महाभारत के प्रति गहरी रुचि थी। उनके पिता एक अच्छे पद पर तैनात थे। इस कारण घर में किसी चीज की कमी नहीं थी। लेकिन बसु साहब के पिता ने उन्हें गाँव के स्कूल में ही उनका दाखिला कराया।
क्योंकि बसु साहब के पिता भारतीय संस्कृति के पक्षधर थे। वे चाहते थे की उनका पुत्र अंग्रेजी सीखकर पश्चिमी जगत के चकाचौंध में खोने से पहले भारतीय संस्कृति से पूरी तरह अवगत हो जाये।
इस प्रकार जगदीशचंद बसु की शुरुआती शिक्षा गाँव के ही स्कूल में हुई। बाल्यकाल से ही जगदीश चंद्र बसु पढ़ने लिखने में कुशाग्र बुद्धि के थे। शुरू के पाँच साल उन्होंने फरीदपुर के बंगाली माध्यम के स्कूल में शिक्षा ग्रहण की।
बाद में उनका नामांकन कलकत्ता के जेवियर कॉलेज में हुई जहाँ से उन्होंने स्नातक की डिग्री हासिल की। उन्हें जीव विज्ञान के प्रति भी गढ़री रुचि थी। इस कारण स्नातक के बाद चिकित्सा शास्त्र में शिक्षा ग्रहण के लिए उन्हें लंदन भेजा गया।
लेकिन कुछ स्वास्थ्य समस्या के कारण वे चिकित्सा शास्त्र में अपनी शिक्षा पूरी नहीं कर सके। लेकिन उन्होंने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से विज्ञान में उच्च शिक्षा ग्रहण की। इस दौरान उन्हें कई बड़े वैज्ञानिकों से मिलने का मौका मिला।
लंदन में उन्होंने विज्ञान में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की तत्पश्चात वे भारत वापस आ गये।
अंग्रेज प्रोफेसर के समकक्ष वेतन की मांग
कहते हैं की इस महान वैज्ञानिक ने अंग्रेजों की नीति का विरोध करते हुए लगातार तीन वर्ष तक कॉलेज में बिना वेतन के अध्यापन का कार्य किया। हुआ की लंदन से इंडिया वापस आने के बाद उनकी नियुक्ति कलकत्ता के प्रेसिडेंसी कॉलेज में प्रोफेसर के रूप में हुई।
बसु साहब शायद पहले भारतीय थे जिनकी नियुक्ति उस समय सीधे प्रोफेसर के पद पर हुई थी। क्योंकि अंग्रेजों के शासनकाल में किसी भी भारतीय का उच्चपद पर सीधी नियुक्ति नहीं होती थी। यहाँ तक की समान काम के लिए समान वेतन भी भारतीय को नहीं मिलता था।
कलकत्ता के प्रेसिडेंसी कॉलेज में अध्यापन के दौरान उन्हें भी भेद-भाव का सामना करना पड़ा। उनका वेतन अंग्रेज प्रोफेसर की तुलना में आधा था। इस बात को लेकर उन्होंने विरोध किया। उन्होंने निर्णय लिया की वे अंग्रेजों से आधा नहीं बल्कि एक समान वेतन लेंगे।
फलतः उन्होंने तीन साल तक विना वेतन लिए अपना सेवा दिया। अंत में कालेज प्रवंधन को उनके आगे झुकना पड़ा और अंत में उन्हें पूरा वेतन का भुगतान किया गया।
सर जगदीश चंद्र बसु की उपलब्धियां <<<
कुछ विद्वानों के अनुसार सर जगदीश चंद्र बसु की उपलब्धियां उनके समय के हिसाब से इतनी आगे थी की उनका मूल्यांकन करना असंभव था। जे.सी. बोस साहब कालेज में अध्यापन के साथ-साथ अपने अनुसंधान में भी निरंतर लगे रहते।
उस समय कॉलेज में शोध के लिए उचित व्यवस्था का अभाव था। उन्होंने अपने अनुसंधान में अपना खुद का पैसा लगाया। जब दिन में समय नहीं मिलता था तब वे रात में जगकर अपने शोध कार्य को अंजाम देते।
सतत लगन और परिश्रम के द्वारा सर जगदीश चंद्र बसु ने ढेर सारी उपलब्धियां हासिल की। माइक्रोवेव पर काम करते हुए उन्होंने माइक्रोवेव के द्वारा दूर स्थित घंटी को बजाकर दिखया।
उन्होंने बंगाल के तत्कालीन लेफ्टिनेंट गवर्नर सर विलियम मैकेनजी के सामने अपने प्रयोग का प्रदर्शन किया था। इस प्रकार जगदीश चंद्र बोस ने विद्धुत चुंबकीय तरंगों का पहला सार्वजनिक प्रदर्शन 1894 ईस्वी में कलकत्ता के टाउन हॉल में किया था।
इसके साथ ही उन्होंने माइक्रोवेव तरंगों के लिए उपकरणों का आविष्कार किया। उन्होंने धातु और वनस्पति के संवेदनशीलता से विश्व को अवगत कराया। इस प्रकार आगे चलकर वे एक महान भौतिकशास्त्री के रूप में जगत प्रसिद्ध हो गये।
जगदीश चंद्र बोस के आविष्कार <<<
अपने सम्पूर्ण जीवन काल में बसु साहब ने कई आविष्कार किये। आईये जानते हैं उनके आविष्कार के बारें में संक्षेप में।
रेडियो के वास्तविक आविष्कारक<<<
कहते हैं की रेडियो के आविष्कारक कहे जाने वाले मार्कोनी के प्रदर्शन से 2 साल पूर्व ही जगदीश चंद्र बसु ने रेडियो तरंगों द्वारा बेतार संचार को प्रदर्शित कर लिया था। लेकिन मार्कोनी के द्वारा पहले पेटेंट करा लेने के कारण रेडियो के आविष्कार का श्रेय मार्कोनी को चला गया।
लेकिन अभी भी कुछ वैज्ञानिक रेडियो के वास्तविक आविष्कारक सर जगदीश चंद्र बसु को ही मानते हैं। बसु साहब द्वारा वेतार के द्वारा अपनाई गई संकेत व्यवस्था मार्कोनी द्वारा अपनायी गयी विधि से बेहतर था।
कहते हैं की रेडियो तरंग का पता करने के लिए उन्होंने ही पहली बार सेमी कंडक्टर जंक्शन का उपयोग किया। पेड़-पौधों के सूक्ष्म संवेदनायों से विश्व को अवगत कराने के लिए उन्होंने दिन रात मेहनत कर एक यंत्र का आविष्कार किया।
क्रेस्कोग्राफ का आविष्कार <<<
उन्होंने पेड़-पौधे की संवेदनशीलताओं को सिद्ध करने और विश्व को प्रमाण सहित दिखाने के लिए एक यंत्र का निर्माण किया। उनका यह यंत्र क्रेस्कोग्राफ (crescograph) से नाम से प्रसिद्ध हुया। अतः क्रेस्कोग्राफ का आविष्कार का श्रेय इसी महान वैज्ञानिक को जाता है।
इस यंत्र की खासियत है की ये पेड़-पौधे के सूक्ष्म गतिविधियों को कई हजार गुणा बढ़ाकर दिखाता है। इस कारण सूक्ष्म गतिविधियों को भी आसानी से महसूस किया जा सकता है।
जगदीशचंद बसु की खोज <<<
बसु साहब का वनस्पति विज्ञान में अहम योगदान माना जाता है। बचपन से ही उन्हे पेड़ पौधे के अध्ययन में गहरी रुचि थी। वे पेड़ पौधे पर नित्य अपना अनुसंधान करते रहते। अंत में जाकर वनस्पति विज्ञान में उन्हें अभूतपूर्व सफलता मिली।
उन्होंने पेड़ पौधे की संवेदनशीलताओं पर गहन अनुसंधान किया और इस निष्कर्ष पर पहुंचे की पौधे में भी जान होती है। उन्होंने पहली वार दुनियाँ को बताया की पेड़-पौधे का भी जन्म होता है। उसमें भी सुख-दुख का अहसास होता है। उनकी भी मृत्यु होती है।
पेड़ पौधे में भी महसूस करने की शक्ति होती है। उन्होंने पहली बार पेड़-पौधे में जीवन होने की बात से विश्व को अवगत कराया। इस तरह सर जगदीश चंद्र बसु ने पौधे में संवेदनशीलता की खोज की थी।
अपने खोज के माध्यम से सर जगदीश चंद्र बसु ने हमारी राष्ट्रीय संस्कृति का सार बतलाया। क्योंकि हमारे पौराणिक धर्मग्रंथ में भी इस बात का प्रमाण मौजूद है की पेड़ पौधे में भी जीवन होता है। हिन्दू समुदाय के लोग बरगद, पीपल और तुलसी को देवतुल्य मानकर पूजा करते हैं।
पेड़-पौधे पर बिष के प्रभाव का प्रदर्शन <<<
बसु साहब ने दुनियाँ को पहली बार सिद्ध करके दिखया की पेड़-पौधे भी जहर के प्रभाव से मरते हैं। जगदीशचन्द्र बोस (जे सी बोस) ने 10 मई 1901 ईस्वी को अपने प्रयोग द्वारा इस बाद को दुनियाँ के सामने साबित किया।
उन्होंने सबसे पहले रॉयल सोसाइटी लंदन में पेड़-पौधों की संवेदनशीलता को सिद्ध करके दिखाया था। कहते हैं की रॉयल सोसाइटी लंदन का पूरा हॉल उस बक्त सैकड़ों वैज्ञानिकों से खचाखच भरा था।
लोग सर जगदीशचन्द्र बोस के द्वारा दिखाए जाने वाले प्रयोग का वेसब्री से इंतजार कर रहे थे। बोस साहब ने एक पौधा अपने हाथ में लिया। पौधा विलकुल हरा-भरा लहरा रहा था। सारे वैज्ञानिक टकटकी लगाकर वसु साहब के प्रयोग को देख रहे थे।
वसु साहब ने पौधे की जड़ को एक बोतल में डाल दिया। उस बोतल में ब्रोमाइड भरा हुआ था जो एक घातक विष होता है। उस घातक विष भरे बोतल में पौधे को डालने के बाद उसका सम्बन्ध क्रेस्कोग्राफ (crescograph) नामक यंत्र से कर दिया गया।
क्रेस्कोग्राफ (crescograph) के द्वारा पौधे की अति सूक्ष्म संवेदना भी रिकार्ड की जा सकती है। कुछ ही सेकंड में जहर के प्रभाव से पौधे में उत्तेजना उत्पन्न होने लगी। पौधे में पैदा होने वाली संवेदना पर्दे पर साफ-साफ प्रदर्शित हो रही थी।
लोगों ने तालियों से उनकी सराहना की और पूरा हॉल तालियों की आवाज से गूंज उठा। कुछ समय बाद स्क्रीन पर दिखने वाली पौधे की संवेदनशीलता समाप्त हो गयी। क्योंकि उस जहर के प्रभाव से पौधा मर चुका था।
इस प्रयोग को देखकर वहाँ उपस्थित वैज्ञानिक ने वाह वाह’ करते हुए मुक्त स्वरों से उनकी प्रशंसा की। इस प्रयोग के बाद बसु साहब पूरे विश्व में प्रसिद्ध हो गये। जगदीश चंद्र बोस ने अपने प्रयोग से विश्व को चकित कर विज्ञान के क्षेत्र में भारत का परचम लहराया।
पेड़ पौधे पर संगीत का प्रभाव <<<
पहली बार दुनियाँ के किसी वैज्ञानिक ने बताया की पेड़-पौधे पर भी संगीत का प्रभाव पड़ता है। बसु साहब ने बताया की वनस्पति भी मौसम और तापमान से प्रभावित होते हैं। उन्होंने बताया की पेड़ पौधे को भी पीड़ा महसूस होती है।
उन्हें भी काटने पर दर्द होता है। पड़े-पौधे पर संगीत का अच्छा प्रभाव होता है। वे भी संगीत को सुनकर झूमते हैं। बाद में एक अध्ययन के बाद उनकी यह बात सही साबित हुई की संगीत का पेड़-पौधे के विकास में सकारात्मक असर होता है।
धातु और जीव दोनों थकते हैं <<<
बोस साहब ने अपने प्रयोग में पाया की धातु और जीव दोनों लगातार काम करने से थक जाते हैं। उन्होंने बताया की धातु और जीव दोनों में ठंड एल्कोहल से एक समान हरकत होती है। एनेस्थीसिया द्वारा दोनों में बेहोसी की हालत पैदा हो सकती है।
दोनों में बिजली के करेंट से अति-उत्तेजना पैदा होती है। दोनों पर विष का प्रभाव पड़ता है। धातु और जीव दोनों को चोट से आघात पहुंचता है। दोनों अत्यधिक श्रम से थक जाते हैं। लेकिन दोनों में पुनः शक्ति अर्जित करने की क्षमता होती है।
उन्होंने पाया की कोई इलेक्ट्रॉनिक उपकरण लगातार काम करने के कारण बंद हो जाता है। लेकिन थोड़ी देर बंद करने के बाद फिर से काम करने लगता है।
इसी सिद्धांत पर हबाई जहाज में भी जहाज के मशीन के थकान मापने के लिए एक प्रकार का यंत्र लगाया जाता है। जिसे fatigue Meter के नाम से जाना जाता है।
जीव, वनस्पति और धातु सभी एक ही नियम से बंधे हुए हैं।
उन्होंने धातु के साथ-साथ चट्टानों पर भी गहन अध्ययन किया। बसु साहब ने चट्टान और धातु पर शोध इस प्रकार शोध किया जैसे की कोई डॉक्टर शरीर के मांशपेशी और नसों का अध्ययन करता है।
उन्होंने धातुयों को भौतिक, रासायनिक और विधुततीय तीन प्रक्रिया से गुजार कर देखा। अपने इस प्रयोग में उन्होंने पाया की इन सभी प्रक्रिया से धातु के हरकतों में बदलाव होता है।
धातुओं के इस हरकतों को विधुत विकिरण के द्वारा आसानी से मापा जा सकता है। अपने अध्ययन से वे इस निष्कर्ष पर पहुंचे की पेड़-पौधे, धातु और जीव सभी एक समान सिद्धांत से बंधे होते हैं।
जगदीश चन्द्र बोस की मृत्यु <<<
जीवन के अंतिम दिनों में उनका स्वास्थ्य खराब रहने लगा। वे कलकत्ता से तत्कालीन विहार के गरिडीह में रहने लगे। 23 नवंबर 1937 के सुवह के बक्त वे स्नानगार में फिसल कर गिर गए। कहते हैं की थोड़ी बाद उनकी मृत्यु हो गई।
इस प्रकार इस महान वैज्ञानिक ने करीब 79 वर्ष तक विज्ञान की सेवा कर भारत का मस्तक गर्व से ऊंचा किया। सर जगदीश बसु ने विज्ञान में शोधकार्य के लिए कलकत्ता में “बोस इंस्टीट्यूट” की स्थापना की। आज जगदीश चंद्र बोस हमार बीच नहीं हैं लेकिन उनके योगदान को हमेशा याद रखा जाएगा।
सम्मान व पुरस्कार <<<
भले ही जगदीश चंद्र बोस नोबेल पुरस्कार विजेता नहीं बन सके। लेकिन उनकी उपलब्धि किसी नोबेल पुरस्कार वैज्ञानिक से कम नहीं आँकी जा सकती। बसु साहब को विज्ञान में उनके अहम योगदान के लिए कई सम्मान और पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
ब्रिटिश सरकार ने उन्हें इंगलेंड का सर्वोच्च सम्मान ‘सर’ अर्थात नाइट की उपाधि प्रदान की। जगदीश चंद्र वसु को लंदन के ‘रॉयल सोसाइटी’ नामक संस्था ने अपना फ़ेलो (सदस्य) मनोनीत कर सम्मानित किया।
सन 1903 में अंग्रेज सरकार ने जगदीश चंद्र बोस को “ऑर्डर ऑफ दी स्टार ऑफ इन्डियाज चैंपियन” बनाया।
वे सन 1928 में वियना विज्ञान अकादमी के सदस्य और सन 1929 में फिनलैंड विज्ञान सोसाइटी के सदस्य मनोनीति किये गये।
जगदीश चंद्र बोस के सम्मान में कलकत्ता स्थित उनके घर ‘आचार्य भवन’ को म्यूजियम में परिवर्तित कर दिया गया। इस म्यूजियम में उनके द्वारा बनाये गये उपकरण आज भी सुरक्षित हैं।
महान वैज्ञानिक जगदीश चंद्र के सम्मान में डाक विभाग ने सन 1958 में डाक टिकट जारी किया था।
इनके सम्मान में सन 2009 में भारतीय वनस्पति उधान का नाम बदलकर ‘आचार्य जगदीश चंद्र बोस इंडियन वोटोनिकल गार्डेन’ किया गया।
जगदीश चन्द्र बसु पुस्तकें <<<
महान वैज्ञानिक डॉ. जगदीशचंद बसु एक वैज्ञानिक के साथ-साथ उच्च कोटी के लेखक भी थे। वैसे तो उन्होंने विज्ञान पर लगभग 15 पुस्तकों की रचना की। लेकिन उनकी दो प्रमुख पुस्तक है!
1-Response in The Living and Non-living और 2-The Nervous Mechanism of Plants की चर्चा अधिक मिलती है। रिस्पांस इन द लिविंग एंड नॉन लिविंग सर जगदीश चंद्र बसु द्वारा लिखित सबसे प्रसिद्ध पुस्तक मानी जाती है।
बोस साहब ने बांग्ला भाषा में एक लेख लिखा था जिसका शीर्षक ‘अदृश आलोक’ था। इस लेख में उन्होंने लिखा था की कुछ तरंग ईंट और दीवार के अवरोध को भी आसानी से पार कर सकती है।
बाद में इस पर शोध भी हुया। वे शायद प्रथम वैज्ञानिक हुये जिन्होंने वैज्ञानिक कहानियों की रचना की। उनके द्वारा रचित कहानी संग्रह ‘अभ्यक्त’ नाम से प्रसिद्ध हुआ।
सर जगदीश चन्द्र बोस के शोध कार्य का प्रकाशन<<<
बोस का पहला शोध कार्य बंगाल की एशियाई सोसाइटी में प्रकाशित होने के लिए प्रेषित किया गया। उनका दूसरा शोध पत्र रॉयल सोसाइटी लंदन में सन 1895 ईस्वी में भेजा गया।
दिसंबर सन 1885 में ही उनका एक अन्य शोध ‘विद्धुत के ध्रुवीकरण पर नई खोज’ शीर्षक से लंदन के ईलैक्ट्रिकशियन नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ। इस प्रकार सर जगदीश चन्द्र बोस के शोध कार्य की वार्ता विश्व के अनेकों पत्र पत्रिका में प्रकाशित हुई
जगदीश चन्द्र बसु ने किसकी खोज <<<
प्रोफेसर बोस ने ही रेडियो का आविष्कार किया लेकिन ये श्रेय उन्हें नहीं मिल सका साल 1884 में बोस ने नेचुरल साइंस में बैचलर किया और लंदन यूनिवर्सिटी से साइंस में भी बैचलर डिग्री ली. पेड़-पौधों से अपार प्रेम करने वाले इस वैज्ञानिक ने केस्कोग्राफ नाम के एक यंत्र का आविष्कार किया. यह आस-पास की विभिन्न तरंगों को माप सकता था.
वे पहले वैज्ञानिक थे जिन्होंने रेडियो और सूक्ष्म तरंगों की प्रकाशिकी पर कार्य किया
जगदीश चंद्र बसु जीवनी संक्षेप में<<<
जन्म- 30 नवम्बर 1858
स्थान- मेमनसिंह, पूर्वी बंगाल
मृत्यु- गिरिडीह, बंगाल प्रेसिडेंसी, ब्रिटिश …
शिक्षा- कलकत्ता विश्वविद्यालय; क्राइस्ट
क्षेत्र- भौतिकी, जीवभौतिकी, वनस्पतिविज्ञान,
राष्ट्रीयता- ब्रिटिश राज
पूरा नाम – जगदीश चंद्र बोस
जन्मस्थान फरीदपुर, ढाका ब्रिटिश भारत
पिता का नाम – भगवान चन्द्र बोस
माता का नाम- बामा सुंदरी बोस
पत्नी का नाम- अबला बोस
प्रसिद्धि- एक वनस्पति वैज्ञानीक के रूप में