आज की इस टॉपिक में हम देखेंगे biography of Pandit Deendayal Upadhyaya in Hindi language हम आपके लिए Pandit Deendayal Upadhyaya जी की जीवनी लेकर आए हैं !
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>>> पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी का जीवन परिचय <<<
दीनदयाल उपाध्याय एक भारतीय विचारक, अर्थशाष्त्री, समाजशाष्त्री, इतिहासकार और पत्रकार थे. उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के निर्माण में महत्वपूर्ण भागीदारी निभाई और भारतीय जनसंघ (वर्तमान, भारतीय जनता पार्टी) के अध्यक्ष भी बने !
इन्होने ब्रिटिश शासन के दौरान भारत द्वारा पश्चिमी धर्मनिरपेक्षता और पश्चिमी लोकतंत्र का आँख बंद कर समर्थन का विरोध किया. यद्यपि उन्होंने लोकतंत्र की अवधारणा को सरलता से स्वीकार कर लिया, लेकिन पश्चिमी कुलीनतंत्र, शोषण और पूंजीवादी मानने से साफ इनकार कर दिया था. इन्होंने अपना जीवन लोकतंत्र को शक्तिशाली बनाने और जनता की बातों को आगे रखने में लगा दिया.
>>> दीनदयाल उपाध्याय का बचपन और प्रारंभिक जीवन <<<
दीनदयाल उपाध्याय का जन्म 25 सितम्बर, 1916 को राजस्थान के धन्किया में एक मध्यम वर्गीय प्रतिष्ठित हिंदू परिवार में हुआ था. और वर्तमान उत्तर प्रदेश की पवित्र ब्रजभूमि में नगला चंद्रभान नामक गांव में हुआ था इनके बचपन में एक ज्योतिषी ने इनकी जन्म कुंडली देखकर भविष्यवाणी की थी कि आगे चलकर यह बालक एक महान विद्वान एवं विचारक बनेगा एक अग्रणी राजनेता और निस्वार्थ सेवा भर्ती होगा मगर यह विवाह नहीं करेगा अपने बचपन में ही दिन दयाल जी को एक गहरा आघात सहना पड़ा !
जब सन् 1939 में बीमारी के कारण उनके भाई की असामयिक मृत्यु हो गई उन्होंने अपनी हाई स्कूल की शिक्षा वर्तमान राजस्थान के सीकर से प्राप्त की विद्या ध्यान में उत्कृष्ट होने के कारण सीकर के तत्कालीन नरेश ने बालक दीनदयाल को एक स्वर्ण पदक किताबों के लिए ₹250 और ₹10 की मासिक छात्रवृत्ति से पुरस्कृत किया !
दीनदयाल जी ने अपने इंटरमीडिएट की परीक्षा पिनाली में विशेष योग्यता के साथ उतरन की तत्पश्चात वो बी.ए. की शिक्षा ग्रहण करने के लिए कानपुर आ गए जहां वे सनातन धर्म कॉलेज में भर्ती हो गए अपने एक मित्र श्री बलवंत महाशब्दे की प्रेरणा से सन 1939 में वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में सम्मिलित हो गए उसी वर्ष उन्होंने बीए की परीक्षा भी प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण की इसके बाद एम.ए. की पढ़ाई के लिए वह आगरा आ गए !
आगरा में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सेवा के दौरान उनका परिचय श्री नानाजी देशमुख और श्री भाउ जुगड़े से हुआ इसी समय दीनदयाल जी की बहन सुश्री रमा देवी बीमार पड़ गई अपने इलाज के लिए वह आगरा आ गई मगर दुर्भाग्यवश उनकी मृत्यु हो गई !
दीनदयाल जी के लिए जीवन का यह दूसरा बड़ा आघात था इसके कारण वे अपने एम. ए. की परीक्षा नहीं दे सके और उनकी छात्रवृत्ति भी समाप्त हो गई !
उनके परदादा का नाम पंडित हरिराम उपाध्याय था, जो एक प्रख्यात ज्योतिषी थे. उनके पिता का नाम श्री भगवती प्रसाद उपाध्याय तथा मां का नाम रामप्यारी था. उनके पिता जलेसर में सहायक स्टेशन मास्टर के रूप में कार्यरत थे और माँ बहुत ही धार्मिक विचारधारा वाली महिला थीं. इनके छोटे भाई का नाम शिवदयाल उपाध्याय था !
दुर्भाग्यवश जब उनकी उम्र मात्र ढाई वर्ष की थी तो उनके पिता का असामियक निधन हो गया. इसके बाद उनका परिवार उनके नाना के साथ रहने लगा. यहां उनका परिवार दुखों से उबरने का प्रयास ही कर रहा था कि तपेदिक रोग के इलाज के दौरान उनकी माँ दो छोटे बच्चों को छोड़कर संसार से चली गयीं. सिर्फ यही नहीं जब वे मात्र 10 वर्षों के थे तो उनके नाना का भी निधन हो गया !
उनके मामा ने उनका पालन पोषण अपने ही बच्चों की तरह किया. छोटी अवस्था में ही अपना ध्यान रखने के साथ-साथ उन्होंने अपने छोटे भाई के अभिभावक का दायित्व भी निभाया परन्तु दुर्भाग्य से भाई को चेचक की बीमारी हो गयी और 18 नवंबर, 1934 को उसका निधन हो गया !
दीनदयाल ने कम ऊम्र में ही अनेक उतार-चढ़ाव देखा, परंतु अपने दृढ़ निश्चय से जिन्दगी में आगे बढ़े. उन्होंने सीकर से हाई स्कूल की परीक्षा पास की. दीनदयाल जी परीक्षा में हमेशा प्रथम स्थान पर आते थे उन्होंने मैट्रिक और इंटरमीडिएट दोनों ही परीक्षाओं में गोल्ड मेडल प्राप्त किया !
इन परीक्षाओं को पास करने के बाद में आगे की पढ़ाई करने के लिए एस . डी. कॉलेज कानपुर में प्रवेश लिया वहां उनकी मुलाकात श्री सुंदर सिंह भंडारी, बलवंत महाशिंदे जैसे कई लोगों से हुई इन लोगों से मुलाकात होने के बाद दीनदयाल जी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यक्रमों में रुचि लेने लगे !
पंडित दीनदयाल उपाध्याय जन्म से बुद्धिमान और उज्ज्वल प्रतिभा के धनी दीनदयाल को स्कूल और कॉलेज में अध्ययन के दौरान कई स्वर्ण पदक और प्रतिष्ठित पुरस्कार प्राप्त हुए. उन्होंने अपनी स्कूल की शिक्षा जीडी बिड़ला कॉलेज, पिलानी, और स्नातक की की शिक्षा कानपुर विश्वविद्यालय के सनातन धर्म कॉलेज से पूरी की. इसके पश्चात उन्होंने सिविल सेवा की परीक्षा पास की लेकिन आम जनता की सेवा की खातिर उन्होंने इसका परित्याग कर दिया !
>>> आर.एस.एस. के साथ उनका सम्बन्ध <<<
दीनदयाल उपाध्याय अपने जीवन के प्रारंभिक वर्षों से ही समाज सेवा के प्रति अत्यधिक समर्पित थे. वर्ष 1937 में अपने कॉलेज के दिनों में वे कानपुर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आर.एस.एस.) के साथ जुड़े. वहां उन्होंने आर.एस.एस. के संस्थापक डॉ. हेडगेवार से बातचीत की और संगठन के प्रति पूरी तरह से अपने आपको समर्पित कर दिया !
वर्ष 1942 में कॉलेज की शिक्षा पूर्ण करने के बाद उन्होंने न तो नौकरी के लिए प्रयास किया और न ही विवाह का, बल्कि वे संघ की शिक्षा का प्रशिक्षण प्राप्त करने के लिए आर.एस.एस. के 40 दिवसीय शिविर में भाग लेने नागपुर चले गए !
>>> जनसंघ के साथ उनका सम्बन्ध <<<
भारतीय जनसंघ की स्थापना डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी द्वारा वर्ष 1951 में किया गया एवं दीनदयाल उपाध्याय को प्रथम महासचिव नियुक्त किया गया. वे लगातार दिसंबर 1967 तक जनसंघ के महासचिव बने रहे. उनकी कार्यक्षमता, खुफिया गतिधियों और परिपूर्णता के गुणों से प्रभावित होकर डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी उनके लिए गर्व से सम्मानपूर्वक कहते थे कि- ‘यदि मेरे पास दो दीनदयाल हों, तो मैं भारत का राजनीतिक चेहरा बदल सकता हूं’ !
परंतु अचानक वर्ष 1953 में डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के असमय निधन से पूरे संगठन की जिम्मेदारी दीनदयाल उपाध्याय के युवा कंधों पर आ गयी. इस प्रकार उन्होंने लगभग 15 वर्षों तक महासचिव के रूप में जनसंघ की सेवा की. भारतीय जनसंघ के 14वें वार्षिक अधिवेशन में दीनदयाल उपाध्याय को दिसंबर 1967 में कालीकट में जनसंघ का अध्यक्ष निर्वाचित किया गया !
>>> एक लेखक के रूप में <<<
दीनदयाल उपाध्याय के अन्दर की पत्रकारिता तब प्रकट हुई जब उन्होंने लखनऊ से प्रकाशित होने वाली मासिक पत्रिका ‘राष्ट्रधर्म’ में वर्ष 1940 के दशक में कार्य किया !
अपने आर.एस.एस. के कार्यकाल के दौरान उन्होंने एक साप्ताहिक समाचार पत्र ‘पांचजन्य’ और एक दैनिक समाचार पत्र ‘स्वदेश’ शुरू किया था. उन्होंने नाटक ‘चंद्रगुप्त मौर्य’ और हिन्दी में शंकराचार्य की जीवनी लिखी !
उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉ. के.बी. हेडगेवार की जीवनी का मराठी से हिंदी में अनुवाद किया !
उनकी अन्य प्रसिद्ध साहित्यिक कृतियों में ‘सम्राट चंद्रगुप्त’, ‘जगतगुरू शंकराचार्य’, ‘अखंड भारत क्यों हैं’, ‘राष्ट्र जीवन की समस्याएं’, ‘राष्ट्र चिंतन’ और ‘राष्ट्र जीवन की दिशा’ आदि हैं !
>>> भारतीय लोकतंत्र और समाज के प्रति उनका विचार <<<
दीनदयाल उपाध्याय महान चिंतक थे और उनकी अवधारणा थी कि आजादी के बाद भारत का विकास का आधार अपनी भारतीय संस्कृति हो न की अंग्रेजों द्वारा छोड़ी गयी पश्चिमी विचारधारा. हालांकि भारत में लोकतंत्र आजादी के तुरंत बाद स्थापित कर दिया गया था !
परंतु दीनदयाल उपाध्याय के मन में यह आशंका थी कि लम्बे वर्षों की गुलामी के बाद भारत ऐसा नहीं कर पायेगा. भारत की सनातन विचारधारा को युगानुकूल रूप से प्रस्तुत करते हुए देश को एकात्म मानव दर्शन जैसी प्रगतिशील विचारधारा दी पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने एकात्म मानववाद के दर्शन पर श्रेष्ठ विचार व्यक्त किए हैं !
उनका विचार था कि लोकतंत्र भारत का जन्मसिद्ध अधिकार है न की पश्चिम (अंग्रेजों) का एक उपहार. वे इस बात पर भी बल दिया करते थे कि कर्मचारियों और मजदूरों को भी सरकार की शिकायतों के समाधान पर ध्यान देना चाहिए. उन्होंने अपनी पुस्तक एकात्म मानववाद में साम्यवाद, पूंजीवाद दोनों की शमालोचना की है !
एकात्म मानववाद में जाति की मूलभूत आवश्यकताओं और सृजित कानूनों के अनुरूप राजनीतिक कार्रवाई हेतु एक वैकल्पिक संदर्भ दिया गया है उनका विचार था कि प्रत्येक व्यक्ति का सम्मान करना प्रशासन का कर्तव्य होना चाहिए !
उनके अनुसार लोकतंत्र अपनी सीमाओं से परे नहीं जाना चाहिए और जनता की राय उनके विश्वास और धर्म के आलोक में सुनिश्चित करना चाहिए. दीनदयाल उपाध्याय का मानना है कि हिंदू कोई धर्म या संप्रदाय नहीं बल्कि भारत की राष्ट्रीय संस्कृति है !
>>> ‘एकात्म मानववाद‘ की अवधारणा <<<
दीनदयाल द्वारा स्थापित ‘एकात्म मानववाद’ की अवधारणा पर आधारित राजनितिक दर्शन भारतीय जनसंघ (वर्तमान भारतीय जनता पार्टी) की देन है. उनके अनुसार ‘एकात्म मानववाद’ प्रत्येक मनुष्य के शरीर, मन, बुद्धि और आत्मा का एक एकीकृत कार्यक्रम है !
उन्होंने कहा कि एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में भारत पश्चिमी अवधारणाओं जैसे- व्यक्तिवाद, लोकतंत्र, समाजवाद, साम्यवाद और पूंजीवाद पर निर्भर नहीं हो सकता है. उनका विचार था कि भारतीय मेधा पश्चिमी सिद्धांतों और विचारधाराओं से घुटन महसूस कर रही है, परिणामस्वरूप मौलिक भारतीय विचारधारा के विकास और विस्तार में बहुत बाधा आ रही है !
>>> निधन <<<
19 दिसंबर 1967 को दीनदयाल उपाध्याय को भारतीय जनसंघ का अध्यक्ष चुना गया पर नियति को कुछ और ही मंजूर था. 11 फ़रवरी, 1968 की सुबह मुग़ल सराय रेलवे स्टेशन पर दीनदयाल का निष्प्राण शरीर पाया गया. इसे सुनकर पूरे देश दु:ख में डूब गया !
अपने प्रिय नेता के खोने के बाद भारतीय जन संघ के कार्यकर्ता और नेता अनाथ हो गए थे पार्टी को इस शौक से उबरने में बहुत समय लगा उनकी इस तरह हुई हत्या को कई लोगों ने भारत के सबसे बुरे कांडों में से एक माना पर सच तो यह है कि पंडित दीनदयाल उपाध्याय जैसे लोग समाज के लिए सदैव अमर रहते हैं !
इस महान नेता को श्रद्धांजलि देने के लिए राजेंद्र प्रसाद मार्ग पर भीड़ उमड़ पड़ी. उन्हें 12 फरवरी, 1968 को भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. जाकिर हुसैन, प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और मोरारजी देसाई द्वारा श्रद्धांजलि अर्पित की गई. आजतक उनकी मौत एक अनसुलझी पहेली बनी हुई है !
जन्म ->> 25 सितम्बर 1916
जन्म स्थान ->> ब्रजभूमि, नगला चंद्रभान, उत्तर – प्रदेश
कार्य – विचारक, अर्थशास्त्री, समाजशास्त्री , इतिहासकार और पत्रकार !
पिता का नाम ->> श्री भगवती प्रसाद उपाध्याय
माता का नाम->> श्रीमती रामप्यारी
भाई का नाम ->> शिव दयाल उपाध्याय
चचेरी बहन – रमा देवी
मृत्यु->> 11 फरवरी सन् 1968 मुगलसराय ( उत्तर प्रदेश)
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