आज की इस टॉपिक में हम देखेंगे Biography of Lal Bahadur Shastri. हम आपके लिए Lal Bahadur Shastri जी की जीवनी लेकर आए हैं !
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लाल बहादुर शास्त्री की जीवनी<<<
बात कुछ समय पुरानी है पाँच 6 वर्ष का एक छोटा सा बालक स्कूल से घर लौट रहा था उसके साथ उसके कई सहपाठी भी थे ! रास्ते में आम का बगीचा पड़ा पीले-पीले रसीले आमों को देखकर उनके मुंह में पानी भरा आया आसपास पड़े पत्थरों को उठाकर वे पेड़ों में मार कर आम तोड़ने लगे एक छोटा सा बालक एक कोने में चुपचाप खड़ा रहा !
साथियों ने उकसाया नन्हें तू भी क्यों नहीं तोड़ लेता 2, 4 आम लेकिन बालक के अंतः करण ने चोरी से आम तोड़ने की अनुमति नहीं दी उस पर उसका मन एक गुलाब के फूल पर ललचा गया उसने एक फूल तोड़ लिया इसी बीच बगीचे का माली डंडा फटकारता हुआ आ धमका और बच्चे तो भाग खड़े हुए पर नन्हें वहीं खड़ा रहा माली ने उसे पकड़ लिया और उसके कान उमेठकर गाल पर दो चपत जमा दिए !
बालक सुबकता हुआ बोला तुमने मुझे थप्पड़ क्यों मारा ? तुम्हें पता नहीं कि मेरे पिताजी जीवित नहीं है तो उसने बोला तब तो मुझे दो थप्पड़ और लगाने चाहिए बिना बाप के बच्चों को कभी चोरी नहीं करना चाहिए तुम्हें अच्छा बच्चा बनना चाहिए बहुत अच्छा समझे !
नन्हें को लगा जैसे माली रूप में उसको जीवन की दिशा बताने वाला कोई गुरु खड़ा है उसी क्षण नन्हें ने संकल्प किया कि वह एक अच्छा बच्चा बनकर दिखाएगा और उसने अच्छा बच्चा ही नहीं एक अच्छा आदमी भी बन कर दिखा दिया इतना अच्छा कि भारत माता अपने इस सपूतों पर गर्व से फूली न समाई उसका जीवन इमानदारी की जीती जागती मिसाल बन गया !
यह नन्हें और कोई नहीं बल्कि लाल बहादुर नाम का बालक था जो अपनी सच्चाई और परिश्रम के बलबूते पर एक दिन भारत का प्रधानमंत्री बना भारत के गौरवशाली प्रधानमंत्री का जन्म 2 अक्टूबर 1904 को मुगलसराय में हुआ बालक लाल बहादुर डेढ़ वर्ष का भी ना होने पाया था कि उसके सिर से पिता का साया उठ गया उनका तथा दो अन्य बड़ी बहनों के पालन पोषण का भार माता रामदुलारी पर आ पड़ा। लाल बहादुर शास्त्री ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अपने नाना के घर पर रह कर प्राप्त की उनकी मिन्डल कक्षा की पढ़ाई काशी में मौसा जी के पास रहकर हुई !
वहां के हरिश्चंद्र हाई स्कूल में पढ़ते थे निर्धनता और उन्हें 15 किलोमीटर पैदल चलकर पढ़ने जाना पड़ता था एक बार तो पास में पैसे ना होने के कारण में नाव की उतराई ना दे सके और उन्हें गंगा को तैर कर पार करना पड़ा सन 1920 मैं महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन छेड़ दिया इसने शास्त्री जी की आत्मा को झकझोर दीया उस समय उनकी आयु 16 वर्ष ही थी वे घर परिवार की चिंता छोड़कर असहयोग आंदोलन कूद पड़े !
वर्ष 1921 में सिर्फ 17 वर्ष की उम्र में शास्त्री जी असहयोग आंदोलन में महात्मा गांधी के साथ ब्रिटिश सरकार का विरोध किया था स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने के लिए उन्होंने अपना स्कूल छोड़ दिया था जिसके बाद वर्ष 1921 में वह लाला लाजपत राय द्वारा बनाई गई “द सर्विस ऑफ द पीपल सोसाइटी” से जुड़ गए थे !
वर्ष 1930 में वे गांधीजी के सविनय अवज्ञा आंदोलन से जुड़े और उन्होंने पूरे देश में लोगों को ब्रिटिश शासन को करो या भुगतान न करने के लिए उद्बोधन दिए इसके बाद इन्होंने दांडी यात्रा असहयोग आंदोलन और भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई थी वर्ष 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के समय लाल बहादुर शास्त्री जी ने “करो या मरो” के नारे को परिवर्तित कर “मरो नहीं मारो” कर देश वासियों में उत्साह भरकर आंदोलन में भाग लेने के लिए आह्वान किया था इस दौरान उन्हें एक वर्ष के लिए जेल जाना पड़ा था !
असहयोग आंदोलन बंद होने पर उन्होंने अपनी अधूरी शिक्षा पूरी करने के लिए काशी विद्यापीठ में नाम लिखवा लिया और वहीं से सन 1925 में शास्त्री की उपाधि प्राप्त की विदेश सेवा के कार्य से इलाहाबाद चले गए वहां उनके जीवन में सबसे पहला मोड़ यह आया कि मिर्जापुर निवासी श्री गणेश प्रसाद की सुपुत्री ललिता देवी से 1927 में उनका विवाह हो गया यह विवाह शास्त्री जी के लिए बड़े सौभाग्य और सुख का साथी साधन बना !
शास्त्री जी बहुत कम साधनों में अपना जीवन जीते थे वह अपनी पत्नी को फटे हुए कुर्ते दे दिया करते थे उन्ही पुराने कुर्दू से रुमाल बनाकर उनकी पत्नी उन्हें प्रयोग के लिए दे दती थी अकाल के दिनों में जब देश में भुखमरी विपत्ति आ गई तो शास्त्री जी ने कहा कि देश का हर एक नागरिक एक दिन का व्रत रखेगा तो भुखमरी खत्म हो जाएगी !
शास्त्री जी के जब गोविंद बल्लभ पंत को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया गया था तब लाल बहादुर शास्त्री को उनकी अद्भुत प्रशासनिक क्षमता और संगठन पोषण के आधार पर नियुक्त किया गया था बाद में उन्हें पंत जी के मंत्रिमंडल में पुलिस विभाग और परिवहन मंत्री बनाया गया था !
आजाद भारत में लाल बहादुर शास्त्री ने पहले आम चुनाव में कांग्रेस पार्टी के महासचिव की भूमिका निभाई थी इस दौरान कांग्रेस ने अद्भुत जीत दर्ज की थी वर्ष 1952 में हुए आम चुनाव में लाल बहादुर शास्त्री को केंद्रीय मंत्रिमंडल में नियुक्त किया गया था ! इस दौरान उन्होंने रेलवे मंत्री के रूप में कार्य किया था !
व्हाट्सएप 1926 में शास्त्री जी ने एक रेल दुर्घटना की जिम्मेदारी को लेते हुए मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था जिसके बाद उन्हें भारत के गृह मंत्री के रूप में नियुक्त किया गया था इन्होंने वर्ष 1926 में हुए चुनाव के लिए कांग्रेस का प्रचार प्रसार किया था वह हमेशा पार्टी के प्रति पूरी निष्ठा के साथ कार्य करते थे !
जब देश स्वतंत्र हुआ तब पंडित जवाहरलाल नेहरू ने मंत्रिमंडल में उन्हें 1952 में रेल मंत्री बनाया गया 1957 में गृह मंत्री बने 27 मई 1964 को नेहरू जी का देहांत हो गया देश के राजनैतिक नेताओं ने बहुत सोच समझकर शास्त्री जी को उनका उत्तराधिकारी चुनाव 6 जून 1964 को शास्त्री जी भारत के प्रधानमंत्री बने उस समय देश की स्थिति अच्छी नहीं थी !
1962 के चीनी आक्रमण भारत की प्रतिष्ठा को बहुत ठेस पहुंचाई थी हमारी सेना का मनोबल गिरा हुआ था देश अन्य संकट से जूझ रहा था अपने छोटे से और दुर्बल से दिखाई देने वाले शरीर में कितनी शक्ति छिपी होती है उसका परिचय उन्होंने शीघ्र ही दे दिया 1965 में पाकिस्तान ने भारत पर आक्रमण कर दिया शत्रु को उसके दुस्साहस का मजा सिखाने के लिए शास्त्री जी हुंकार उठे उन्होंने 3 सप्ताह की लड़ाई में ही पाकिस्तान का घमंड चूर चूर कर दिया !
हमारी सेनाएं आक्रमणकारियों को खदेड़ देती हुई लाहौर तक जा पहुंची भारत की इस शानदार सफलता से विश्वभर में खलबली मच गई सोवियत रूस के तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री कोसी जिनके प्रयासों से ताशकंद में जनवरी 1966 में एक संधि पर दोनों देशों के हस्ताक्षर किए !
संधि पर हस्ताक्षर करने के कुछ ही घंटों बाद ताशकंद के अतिथि गृह में अचानक उनकी तबीयत बिगड़ गई और हृदय गति रुक जाने से उनका निधन हो गया !
लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु को लेकर आज भी संशय बना हुआ है 11 जनवरी 1966 को रहस्यमय तरीके से लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु हो गई कुछ लोगों का मानना है कि इनकी मृत्यु दिल का दौरा पड़ने से हुई थी परंतु उनका पोस्टमार्टम नहीं किया गया था क्योंकि उन्हें जहर दिया गया था जो उनके दुश्मनों की गहरी साजिश थी !
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जिसको लेकर आज भी अलग-अलग मत बने हुए हैं !
इस ह्रदय विद्रावक समाचार से सारे विश्व में हाहाकार मच गया भारतवासियों को तो इस समाचार पर सहसा विश्वास ही नहीं हुआ !
अगले दिन उनके शव वायुयान से भारत लाया गया लाखों नर नारी अपनी आंखों में आंसू भरे अपने एक यशस्वी प्रधानमंत्री के अंतिम दर्शनों के लिए खड़े थे विजय घाट उनकी समाधि बना जो श्रद्धा और सम्मान उन्हें मिला वह उन विरले महापुरुषों को ही मिल पाता है वह जन-जन के हृदय सम्राट होते हैं !
शास्त्री जी की डिजाइन का सबसे बड़ा रहस्य यह था कि सदा जनता को अपने साथ लेकर चलते थे उन्होंने “जय जवान, जय किसान” का नारा लगाया !
इसका परिणाम यह हुआ कि जहां एक ओर सेना के जवानों ने राष्ट्र की रक्षा के लिए अपने प्राण हथेली पर रख लिए वहां किसानों ने अपने परिश्रम के द्वार अधिक से अधिक अन्त उपजनों का प्रण किया !
इससे सारा राष्ट्र एक फौलादी दीवार की तरह संकट का सामना करता दिखाई दिया !
शास्त्री जी देश प्रेम को सबसे ऊंचा समझते थे वह अपने सिद्धांतों के बड़े पक्के थे सिद्धांत के आगे ये अपने वे अपनी पत्नी तथा बच्चों तक की परवाह नहीं करते थे !
अपने त्याग, तपस्या, साहस, दृढ़ता और संयम पूर्ण जीवन से वे ऐसी मशाल जला गए जो आने वाली पीढ़ियों के लिए देश सेवा का मार्ग आलोकित करते रहेगी ! शांति के पुजारी और युद्ध के विजेता के रूप में उनका नाम राष्ट्र के इतिहास में सदैव स्वर्णाक्षरों में अंकित रहेगा !
नाम->> लाल बहादुर शास्त्री
जन्म->> 2 अक्टूबर 1904
जन्म स्थान->> मुगलसराय वाराणसी (उत्तर प्रदेश)
पिता का नाम->> मुंशी शारदा प्रसाद श्रीवास्तव
माता का नाम->> राम दुलारी
मृत्यु->> 11 जनवरी 1966
मृत्यु की जगह ->> ताशकंद (उज़्बेकिस्तान )
विवाह ->> सन् 1928
शिक्षा->> महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ यूनिवर्सिटी (1925) में पुरस्कृत ->> भारत रत्न से
पत्नी का नाम->> ललिता देवी
बच्चे ->> 4 लड़के, 2 लड़कियां
राजनीतिक पार्टी->> भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
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