आज की इस टॉपिक में हम देखेंगे Biography of Chandrasekhar aajad. हम आपके लिए Chandrasekhar aajad जी की जीवनी लेकर आए हैं !
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👉 चंद्रशेखर आजाद जीवन परिचय👇
आजाद यह शब्द आते ही अपनी मूंछो को ताव देता वह नौजवान आखों के सामने आ जाता है, जिसे पूरी दुनिया चंद्रशेखर आजाद के नाम से जानती है !
एक युवा क्रांतिकारी जिसने अपने देश के लिए हंसते—हंसते प्राण उत्सर्ग कर दिए. जो अपनी लड़ाई के आखिर तक आजाद ही रहा. दुनिया में जिस सरकार का सूर्य अस्त नहीं होता था, वह शक्तिशाली सरकार भी उसे कभी बेड़ियों में जकड़ ही नहीं पाई. चंद्रेशेखर हमेशा आजाद ही रहें, अपनी आखिरी सांस तक..!
चंद्रशेखर आजाद बुंदेलखंड के थे !
सन् 1906 ईस्वी में पिता “श्री सीताराम तिवारी” और “जागरानी देवी” के परिवार में चंद्रशेखर ने जन्म लिया था और इनका पूरा नाम चंद्रशेखर तिवारी था !
सीताराम तिवारी जी अलीराजपुर में नौकरी करते थे और इनकी पहली दो पत्नियों की मृत्यु हो चुकी थी जगरानी देवी इनकी तीसरी पत्नी थी !
चंद्रशेखर आजाद की मां उन्हें संस्कृत का विद्वान बनाना चाहती थी !
किशोरावस्था में ही चंद्रशेखर देश की आजादी के लिए बेचैन होने लगे बनारस में पढ़ते हुए क्रांतिकारियों के संपर्क में आ गए !
सन् 1921 से 22 ईस्वी के असहयोग आंदोलन के बाद प्रचार का कार्यक्रम चल रहा था मित्र सुखदेव ने नोटिस की एक प्रति चंद्रशेखर को दी और कहा कि इस नोटिस को पुलिस कोतवाली के सामने बिजली के खंभे पर चिपका देना है चंद्रशेखर ने सहर्ष इस खतरनाक काम को अपने हाथ में ले लिया था थोड़ी देर सोचा और मुस्कुराकर योजना बना ली !
जिस तरफ छपाई थी उस तरफ किनारों पर थोड़ी लेई लगा दी ! और अपनी पीठ पर चिपका लिया नोटिस की दूसरी तरफ अधिक लेई लगा दी और फिर वेश बदलकर नोटिस चिपकाने चल पड़े ! वे अपनी पीठ पर उल्टा नोटिस चिपका कर अंग्रेज सिपाही के पास आ गए !
वह सिपाही खंबे के पास ही खड़ा था चंद्रशेखर ने बड़े साहस और धैर्य के साथ खंभे की और अपनी पीठ करके सट कर खड़े हो गए सिपाही से बातचीत भी करने लगे सिपाही संदेह नहीं कर सका !
क्रांतिकारी चंद्रशेखर की पीठ खंभे से सटी हुई थी पीठ पर का नोटिस अंबे पर चिपक गई ! उन्हें इसका अंदाज मिल गया उन्होंने सिपाही जी को सलाम किया और फिर विनम्र भाव से वापस लौट गए ! थोड़ी देर के बाद आते जाते लोगों की नजर खंभे पर चिपके नोटिस पर पड़ी पढ़ने वालों की भीड़ लग गई यह देखकर सिपाही हैरान रह गया वहीं खड़ा रहने और सावधान रहने पर भी नोटिस कहां से आ गया ? कौन चिपका गया? कौन आंखों में धूल झोंक गया ? और उसे उल्लू बना गया ? पर चंद्रशेखर तो बुद्धिमानी और साहस से नोटिस चिपका कर चले गए थे !
चंद्रशेखर आजाद बन चुके थे !
उनका क्रांतिकारी संगठन झांसी से प्रयाग तक अंग्रेजों को धूल चटा रहे थे अंग्रेज परेशान थे ! वे आजाद को कैद करने के लिए दिन रात एक कर रहे थे सन 1931 ईस्वी की फरवरी में वह अपने साथियों के साथ प्रयाग में छिपकर रह रहे थे सरकारी गुप्तचर को पता चल चुका था वह नगर के अल्फ्रेड पार्क में अंग्रेजों से गिर गए थे उन्होंने अकेले सब से लोहा लिया अनेकों को घायल कर दीया ! पर वह सिंह सपूत शहीद हो गया !
अपनी पीठ पर चिपका लिया नोटिस की दूसरी तरफ अधिक लेई लगा दी और फिर वेश बदलकर नोटिस चिपकाने चल पड़े ! वे अपनी पीठ पर उल्टा नोटिस चिपका कर अंग्रेज सिपाही के पास आ गए !
वह सिपाही खंबे के पास ही खड़ा था चंद्रशेखर ने बड़े साहस और धैर्य के साथ खंभे की और अपनी पीठ करके सट कर खड़े हो गए सिपाही से बातचीत भी करने लगे सिपाही संदेह नहीं कर सका !
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क्रांतिकारी चंद्रशेखर की पीठ खंभे से सटी हुई थी पीठ पर का नोटिस अंबे पर चिपक गई ! उन्हें इसका अंदाज मिल गया उन्होंने सिपाही जी को सलाम किया और फिर विनम्र भाव से वापस लौट गए ! थोड़ी देर के बाद आते जाते लोगों की नजर खंभे पर चिपके नोटिस पर पड़ी पढ़ने वालों की भीड़ लग गई यह देखकर सिपाही हैरान रह गया वहीं खड़ा रहने और सावधान रहने पर भी नोटिस
पर चंद्रशेखर तो बुद्धिमानी और साहस से नोटिस चिपका कर चले गए थे !
चंद्रशेखर आजाद बन चुके थे ! उनका क्रांतिकारी संगठन झांसी से प्रयाग तक अंग्रेजों को धूल चटा रहे थे ! अंग्रेज परेशान थे वे आजाद को कैद करने के लिए दिन रात एक कर रहे थे !
18 वीं सदी के अंत में बाहर से आए अंग्रेजों का राज्य आरंभ हो गया अट्ठारह सौ सत्तावन ईसवी में देश ने स्वाधीनता के लिए युद्ध किया था इस युद्ध में झांसी की महारानी रानी लक्ष्मीबाई का योगदान महत्वपूर्ण रहा था वह संग्राम असफल हो गया अंग्रेजी राज्य जम गया पर देश चुप नहीं बैठा !
20वीं सदी के आरंभ में आंदोलन आरंभ हुआ लोकमान्य गंगाधर तिलक, महात्मा गांधी ,जवाहरलाल नेहरू , सरदार वल्लभ भाई पटेल, राजेंद्र प्रसाद और सुभाष चंद्र बोस ने इस आंदोलन का नेतृत्व किया !
क्रांतिकारियों ने सशस्त्र क्रांति का रास्ता अपनाया खुदीराम बोस चंद्रशेखर आजाद, सरदार पटेल आदि के नाम प्रमुख है !
चंद्रशेखर आजाद का जन्म 23 जुलाई, 1906 को मध्यप्रदेश के भाबरा गांव में हुआ था. उनके सम्मान में अब इस गांव का नाम बदलकर चंदशेखर आजाद नगर कर दिया गया है. मूल रूप से उनका परिवार उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के बदरका गांव से था, लेकिन पिता “सीताराम तिवारी” को अकाल के कारण अपने पैतृक गांव को छोड़कर मध्यप्रदेश के भाबरा का रुख करना पड़ा. यह भील जनजाति बहुल इलाका है और इसी वजह से बालक चंद्रशेखर को भील बालकों के साथ धनुर्विद्या और निशानेबाजी करने का खूब मौका मिला और निशानेबाजी उनका शौक बन गया. बालक चंद्रशेखर बचपन से ही विद्रोही स्वभाव का था !
पढ़ाई से ज्यादा उनका मन खेल गतिविधियों में लगता था. इसके बाद वह घटना घटी जिसने पूरे हिंदुस्तान को हिला कर रख दिया. जलियांवाला बाग हत्याकांड ने बालक चंद्रशेखर को झकझोर कर रख दिया और उन्होंने ईंट का जवाब पत्थर से देने की ठान ली.
वर्ष 1921 में महात्मा गांधी ने जब असहयोग आंदोलन की घोषणा की थी तब चंद शेखर की उम्र मात्र 15 वर्ष ही थी और वे उस आंदोलन में शामिल हो गए थे इसके बाद चंद्रशेखर को थाने ले जाकर हवालात में बंद कर दिया गया !
दिसंबर माह के कड़ाके की ठंड में आजाद को ओढ़ने – बिछाने के लिए कोई बिस्तर नहीं दिया गया था जब आधी रात को इंस्पेक्टर चंद्रशेखर को कोठरी में देखने गया तो आश्चर्यचकित रह गया उसने देखा कि बालक चंद्रशेखर दंड बैठक लगा रहे थे ! और उस कड़कड़ाती ठंड में भी पसीने से नहा रहे थे !
👉मेरा नाम आजाद है👇
वैसे तो पण्डित चंद्रशेखर तिवारी को उनके दोस्त पंडितजी, बलराज और क्विक सिल्वर जैसे कई उपनामों से बुलाते थे, लेकिन आजाद उपनाम सबसे खास था और चंद्रशेखर को पसंद भी था. उन्होंने अपने नाम के साथ तिवारी की जगह आजाद लिखना पसंद किया. चंद्रशेखर को जाति बंधन भी स्वीकार नहीं था. आजाद उपनाम कैसे पड़ा, इस सम्बन्ध में भी एक रोचक उपकथा विख्यात है. हालांकि इस कथा का पंडित जवाहर लाल नेहरू ने जिक्र किया है लेकिन यह शुरूआती दौर से ही उनके बारे में सुनी—सुनाई जाती रही है.
हुआ यूं कि 1921 में असहयोग आंदोलन अपने चरम पर था और बालक चंद्रशेखर एक धरने के दौरान गिरफ्तार कर लिया गया और मजिस्ट्रेट के सामने हाजिर किया गया. पारसी मजिस्ट्रेट मिस्टर खरेघाट अपनी कठोर सजाओं के लिए जाने जाते थे. उन्होंने कड़क कर चंद्रेशेखर से पूछा
क्या नाम है तुम्हारा?
चंद्रशेखर ने संयत भाव से उत्तर दिया.
मेरा नाम आजाद है.
मजिस्ट्रेट ने दूसरा सवाल किया.
तुम्हारे पिता का क्या नाम है.
आजाद का जवाब फिर लाजवाब था
उन्होंने कहा मेरे पिता का नाम स्वाधिनता है.
एक बालक के उत्तरों से चकित मजिस्ट्रेट ने तीसरा सवाल किया.
तुम्हारी माता का नाम क्या है.
आजाद का जवाब था.
भारत मेरी मां है और जेलखाना मेरा घर है.
बस फिर क्या था गुस्साए मजिस्ट्रेट ने चंद्रशेखर को 15 बेंत लगाने की सजा सुना दी.
बालक चंद्रशेखर को 15 बेंत लगाई गई लेकिन उन्होंने उफ्फ तक न किया. हर बेंत के साथ उन्होंने भारत माता की जय का नारा लगाया. आखिर में सजा भुगतने के एवज में उन्हें तीन आने दिए गए जो वे जेलर के मूंह पर फेंक आए. इस घटना के बाद लोगों ने उन्हें आजाद बुलाना शुरू कर दिया.
👉क्रांति का शुरूआत👇
जलियांवाला बाग कांड के बाद चंद्रशेखर को समझ में आया कि आजादी बात से नहीं बंदूक से मिलेगी. हालांकि उन दिनों महात्मा गांधी और कांग्रेस का अहिंसात्मक आंदोलन अपने चरम पर था और पूरे देश में उन्हें भारी समर्थन मिल रहा था. ऐसे में हिंसात्मक गतिविधियों के पैरोकार कम ही थे. चंद्रशेखर आजाद ने भी महात्मा गांधी द्वारा चलाए जा रहे असहयोग आंदोलन में हिस्सा लिया और सजा पाई लेकिन चौरा-चौरी कांड के बाद जब आंदोलन वापस लिया गया तो आजाद का कांग्रेस से मोहभंग हो गया, चंद्रशेखर आजाद ने बनारस का रुख किया. महात्मा गाँधी के जीवन परिचय को यहाँ पढ़ें !
बनारस उन दिनों भारत में क्रांतिकारी गतिविधियों का केन्द्र हुआ करता था. बनारस में वह देश के महान क्रांतिकारी मन्मथनाथ गुप्त और प्रणवेश चटर्जी के सम्पर्क में आए. इन नेताओं से वे इतने प्रभावित हुए कि वे क्रांतिकारी दल हिन्दुस्तान प्रजातंत्र संघ के सदस्य बन गए. इस दल ने शुरू में गांवों के उन घरों को लूटने की कोशिश की जो गरीब जनता का खून चूस कर पैसा जोड़ते थे लेकिन दल को जल्दी ही समझ में आ गया कि अपने लोगों को तकलीफ पहुंचा कर वे जनमानस को कभी अपने पक्ष में नहीं कर सकते थे !
दल ने अपनी गतिविधियों को बदला और अब उनका उद्देश्य केवल सरकारी प्रतिष्ठानों को नुकसान पहुंचा कर अपनी क्रांति के लक्ष्यों को प्राप्त करना बन गया. दल ने पूरे देश को अपने उदृश्यों को परिचित करवाने के लिए अपना मशहूर पैम्फलेट द रिवाल्यूशरी प्रकाशित किया. इसके बाद उस घटना को अंजाम दिया गया, जो भारतीय क्रांति के इतिहास के अमर पन्नों में सुनहरे हर्फों में दर्ज है- काकोरी कांड.
काकोरी कांड और कमांडर इन चीफ काकोरी कांड से कौन नहीं परिचित है जिसमें देश के महान क्रांतिकारियों रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाकउल्ला खां, राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी और ठाकुर रोशनसिंह को फांसी की सजा सुनाई गई थी. दल के दस सदस्यों ने इस लूट को अंजाम तक पहुंचाया और अंग्रेजों के खजाने को लूट कर उनके सामने चुनौती पेश की. इस घटना के बाद दल के ज्यादातर सदस्य गिरफ्तार कर लिए गए. दल बिखर गया, आजाद के सामने एक बार फिर दल खड़ा करने का संकट आ गया !
कई प्रयासों के बावजूद अंग्रेज सरकार उन्हें पकड़़ने मे असफल रही थी. इसके बाद छुपते-छुपाते आजाद दिल्ली पहुंचे जहां के फिरोजशाह कोटला मैदान में सभी बचे हुए क्रांतिकारियों की गुप्त सभा आयोजित की गई. इस सभा में आजाद के अलावा महान क्रांतिकारी भगतसिंह भी शामिल हुए. तय किया गया कि एक नये नाम से नये दल का गठन किया जाए और क्रांति की लड़ाई को आगे बढ़ाया जाए. नये दल को नाम दिया गया-हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशना !
आजाद को इसका कमाण्डर इन चीफ बनाया गया. संगठन का प्रेरक वाक्य बनाया गया- हमारी लड़ाई आखिरी फैसला होने तक जारी रहेगी और वह फैसला है जीत या मौत.
👉सांडर्स की हत्या और असेम्बली में बम👇
दल ने सक्रिय होते ही कुछ ऐसी घटनाओं को अंजाम दिया कि अंग्रेज सरकार एक बार फिर उनके पीछे पड़ गई. लाला लाजपत राय की मौत की बदला लेने के लिए भगतसिंह ने सांडर्स की हत्या का निश्चय किया और चंद्रशेखर आजाद ने उनका साथ दिया. इसके बाद आयरिश क्रांति से प्रभावित भगतसिंह ने असेम्बली में बम फोड़ने का निश्चय किया और आजाद ने फिर उनका साथ दिया !
इन घटनाओं के बाद अंग्रेज सरकार ने इन क्रांतिकारियों को पकड़ने में पूरी ताकत लगा दी और दल एक बार फिर बिखर गया. आजाद ने भगतसिंह को छुड़ाने की कोशिश भी की लेकिन सफलता हाथ नहीं लगी. जब दल के लगभग सभी लोग गिरफ्तार हो चुके थे, तब भी आजाद लगातार ब्रिटिश सरकार को चकमा देने मे कामयाब रहे थे. भगत सिंह का जीवन परिचय को यहाँ पढ़ें.
👉अल्फ्रेड पार्क और आजाद योद्धा👇
अंग्रेज सरकार ने राजगुरू, भगतसिंह और सुखदेव को फांसी की सजा सुनाई और आजाद इस कोशिश में थे कि उनकी सजा को किसी तरह कम या उम्रकैद में बदलवा दी जाए. ऐसे ही एक प्रयास के लिए वे इलाहाबाद पहुंचे. इसकी भनक पुलिस को लग गई और जिस अल्फ्रेड पार्क में वे थे, उसे हजारो पुलिस वालों ने घेर लिया और उन्हें आत्मसमर्पण के लिए कहा लेकिन आजाद ने लड़ते हुए शहीद हो जाना ठीक समझा !
सन् 1931 ईस्वी की फरवरी में वे अपने साथियों के साथ प्रयाग में छिपकर रह रहे थे ! सरकारी गुप्तचर को पता चल चुका था वे नगर के अलफ्रेंड पार्क में अंग्रेजों से घिर गए थे और उन्होंने सबसे अकेले लोहा लिया और उन्होंने अकेले अनेकों को घायल भी किया !
तत्पश्चात वह सिंह सपूत शहीद हो गए !
मृत्यु के बाद भी सिपाही उनके शव के पास आने का साहस नहीं कर पा रहे थे ! ऐसे थे हमारे क्रांतिकारी के दीवाने “चंद्रशेखर आजाद” !
उनका अंतिम संस्कार भी अंग्रेज सरकार ने बिना किसी सूचना के कर दिया. लोगों को मालूम चला जो लोग सड़कों पर उतर आए, ऐसा लगा जैसे गंगा जी संगम छोड़कर इलाहाबाद की सड़कों पर उतर आई हों. लोगों ने उस पेड़ की पूजा शुरू कर दी, जहां इस महान क्रांतिकारी ने अतिम सांस ली!
नाम — चंद्रशेखर आजाद
बचपन का नाम — चंद्रशेखर तिवारी
जन्म — 23 जनवरी 1906 में
पिता — श्री सीताराम तिवारी
माता — श्रीमती जगरानी देवी
मृत्यु — अलफ्रेंड पार्क में
अगर आपको मेरी द्वारा दी हुई जानकारी अच्छी लगी और आपको इससे कुछ सीखने को मिला तो आप इसे पूरे आग की तरह फैला दिजिए अपने उन सभी ग्रुप के लोगों के पास टीम में और पूरे हिंदुस्तान में !
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