Biography of Guru Nanak Dev

गुरु नानक देव का जीवन परिचय <<<

वास्तव में सिखों का प्रादुर्भाव हिंदू धर्म की रक्षा के लिए हुआ था । इस मत के प्रवर्तक महान संत गुरु नानक देव उनका जन्म नवंबर माह के कार्तिक पूर्णमासी के दिन संवत् 1526 ईस्वी में पंजाब के तलबंदी नामक गांव में हुआ था । यह गांव “ननकाना साहब” के नाम से विख्यात है! परंतु अब यह पाकिस्तान में है गुरु नानक बचपन से ही अध्ययन शील एवं शांत प्रकृति के थे और सदैव भगवत संबंधी विचारों में खोए रहते थे ! इन्हें पढ़ाने के लिए हिंदी संस्कृत एवं फारसी के अध्यापक नियुक्त किए गए किंतु बाद में यह तीनों इनके शिष्य हो गए यह बचपन से ही साधु स्वभाव के थे और संत महात्माओं की सेवा करते थे एक बार इनके पिता ने इन्हें कुछ रुपए व्यवसाय करने के लिए दिए पर मार्ग में ही नानक जी ने इशारे रुपए साधु संतों की सेवा में खर्च कर दिए और घर आकर कह दिया कि मैं सच्चा व्यवसाय करके आ रहा हूं इन्होंने 25 वर्षों तक संपूर्ण भारतवर्ष का भ्रमण करके ज्ञानार्जन किया इनके समय में यवनो ने अत्याचार से पंजाब की जनता बड़ी त्रस्त थी । दुष्ट शासक हिंदुओं को मार मार कर धर्म परिवर्तन कर आते थे वेदों शास्त्रों और उपनिषदों के अध्ययन अध्यापन की परंपरा समाप्त होती जा रही थी। गुरु नानक यह स्थिति देखकर बड़े दुखी हुए अतः उन्होंने हिंदू धर्म की रक्षा के लिए सिख संप्रदाय की नींव डाली और जपुजी नामक ग्रंथ की रचना की इस ग्रंथ में उन्होंने वेद शास्त्रों के उपदेशों को ही सामान्य भाषा में लिखा एक समय की घटना है कि अहमदाबाद नामक स्थान के रईस भागने नानक जी को भोजन के लिए निमंत्रण दिया इसी बीच उनका दूसरा सुशील लालू बढ़ाई भी भोजन बनाकर ले आया नानक जी रईस के यहां से आया स्वादिष्ट भोजन अस्वीकार कर लालू के यहां से आया रुखा सुखा भोजन करने लगे इस पर भाग रस रईस क्रोधित होकर उसने इसका कारण पूछने लगा तब नानक जी ने कहा एक हाथ में लालू की सूखी रोटी दूसरे हाथ में भाग की बढ़िया रोटी लेकर जोर से दबाई दबाने से लालू की रोटी से दूध की धारा और भाग् की रोटी से खून की बूंदे टपकने लगी यह देखकर वहां पर उपस्थित सभी व्यक्तियों को महान आश्चर्य हुआ । तब नानक जी ने उन्हें बताया कि सूखी रोटी सच्चे खून पसीने की कमाई की है और यह स्वादिष्ट भोजन गरीबों का खून चूस चूसकर बनाया गया है । इसलिए मनुष्य को चाहिए कि वह मेहनत और ईमानदारी से ही अपना जीवन व्यतीत करें नानक जी का जीवन सरल और सादा था । वे एक महान ऋषि थे !
गुरु नानक सिक्खों के प्रथम गुरु थे ! उनके उपरांत सिखों के नौ गुरु और हुए जिनमें गुरु अर्जुन देव, रामदेव , हरगोविंद देव, तेग बहादुर तथा गुरु गोविंद सिंह विशेष प्रसिद्ध हुए !
इस संप्रदाय का प्रमुख धर्म ग्रंथ ”गुरु ग्रंथ साहब” है ! इसका संपादन गुरु अर्जुन देव ने किया था ! इन्होंने ही अमृतसर से प्रसिद्ध स्वर्ण मंदिर का निर्माण भी कराया!

नानक जी का जन्म पाकिस्तान (पंजाब) में रावी नदी के किनारे स्थित तलवंडी नामक गांव में हुआ था। इस दिन को सिख धर्म में काफी उल्लास के साथ मनाया जाता है। इनका जन्म पिता कल्याण या मेहता कालूचन्द जी और मां तृप्ती देवी के घर हुआ।

गुरु नानक देव को नए धर्म यानी सिख धर्म का संस्थापक माना जाता था और वे सिखों के पहले गुरु थे। वह एक महान भारतीय आध्यात्मिक नेता थे।

उनकी शिक्षाएं के प्रति उनकी भक्ति का तरीका दूसरों से अलग था और सभी धर्मों के लोग उनका और उनकी शिक्षाओं का सम्मान करते हैं।

इस बार 19 नवंबर 2021 को गुरुपुरब गुरुनानक देव के जन्मदिन की खुशियाँ ,महोत्सव एवं सिखो के द्वारा त्यौहार मनाया जायेगा। जानिए पूरी कहानी गुरुपुरब के बारे में।

उन्होंने ऐसे समय में मानवता और मानव जाति का संदेश फैलाया जब हर कोई अपने धर्म के प्रसार पर ध्यान केंद्रित कर रहा था। उन्होंने महिलाओं और उनके अधिकारों और समानता के बारे में बात की।

वह एक महान विद्वान थे लेकिन फिर भी उन्होंने चारों दिशाओं में यात्रा करते हुए लोगों के बीच अपना संदेश फैलाने के लिए स्थानीय भाषाओं का इस्तेमाल किया !

गुरु नानक देव का जन्म <<<

कवि और सिख धर्म के संस्थापक नानक देव जी का जन्म 15 अप्रैल 1469 में पंजाब के लाहौर जिले में रावी पर तलवंडी गाँव में हुआ था। जिस घर में गुरु नानक का जन्म हुआ था, उसके एक तरफ अब ‘ननकाना साहिब’ नामक प्रसिद्ध मंदिर है। जो आज के पाकिस्तान के क्षेत्रों में स्थित है।

नानक को ‘पंजाब और सिंध का पैगंबर’ कहा गया है। नानक के पिता मेहता कालू चंद थे, जिन्हें कालू के नाम से जाना जाता था। वह गांव का लेखापाल था। वे एक कृषक भी थे। नानक की माता का नाम तृप्ता देवीथीं।

उन्होंने अपना अधिकांश बचपन अपनी बड़ी बहन बेबे नानकी के साथ बिताया, क्योंकि वह उनसे प्यार करते थे।नानक की इकलौती बहन नानकी उनसे पांच साल बड़ी थीं। साल 1475 में, उसने शादी की और सुल्तानपुर चली गई ।

गुरु नानक देव की शादी <<<

गुरु नानक देव का विवाह 24 सितंबर 1487 में बालपन मे सोलह साल की उम्र में गुरदासपुर जिले के लाखौकी नामक स्थान के रहनेवाले मूला की बेटी सुलखनी देवी से हुआ था।

32 साल की उम्र में इनके यहां पहला बीटा श्रीचन्द का जन्म हुआ। चार साल के बाद दूसरे बेटे लखमीदास का जन्म हुआ।

दोनों लड़कों के जन्म के बाद साल 1507 में नानक देव जी अपने परिवार की जिम्मेदारी ईस्वर पर छोड़कर मरदाना, लहना, बाला और रामदास इन चार साथियों को लेकर तीर्थयात्रा के लिये निकल पडे़। गुरुनानक के पहले बेटे ‘श्रीचन्द आगे चलकर उदासी सम्प्रदाय के जनक बने।

गुरुनानक सुल्तानपुर में, वह स्नान करने और ध्यान करने के लिए पास की एक नदी में जाते थे । एक दिन वह वहाँ गये और तीन दिन तक नहीं लौटे । जब वह लौटे , तो वह एक असामान्य इंसान की तरह लग रहे थे और जब उसने बात की, तो उन्होंने बोलै , “कोई हिंदू या मुस्लिम नहीं है”। इन शब्दों को उनकी शिक्षाओं की शुरुआत माना जाता था।

गुरु नानक देव की पांच यात्राएं <<<

उन्होंने ईश्वर के संदेश को पूरी दुनियाँ में फैलाने के लिए उपमहाद्वीप में प्रमुख रूप से चार आध्यात्मिक यात्राएं कीं। सबसे पहले वह अपने माता-पिता के पास गए और उन्हें इन यात्राओं का महत्व बताया और फिर उन्होंने यात्रा शुरू की।

नानक इस दुनिया में सत्तर साल तक रहे। वह जगह-जगह घूमता रहा। वह गुजरांवाला जिले के सैय्यदपुर गए थे। इसके बाद वे कुरुक्षेत्र, हरिद्वार, वृंदावन, वाराणसी, आगरा, कानपुर, अयोध्या, प्रयाग, पटना, राजगीर, गया और पुरी के लिए रवाना हुए।

उन्होंने पूरे भारत की यात्रा की। उन्होंने चार व्यापक दौरे किए। वे श्रीलंका, म्यांमार, मक्का और मदीना भी गए। उन्होंने बंगाल, दक्कन, श्रीलंका, तुर्की, अरब, बगदाद, काबुल, कंधार और सियाम की यात्रा की।

उन्होंने पंडितों और मुस्लिम पुजारियों के साथ विवाद किया। उन्होंने गया, हरिद्वार और अन्य तीर्थ स्थलों के पंडों से वाद-विवाद किया

  • पहली यात्रा ->> में उन्होंने पाकिस्तान और भारत के अधिकांश हिस्सों को कवर किया और इस यात्रा में लगभग 7 साल लगे यानि साल 1500 से साल 1507 तक।
  • दूसरी यात्रा->> में उन्होंने वर्तमान श्रीलंका के अधिकांश हिस्सों को कवर किया और इसमें 7 साल भी लगे।
  • तीसरी यात्रा->> में उन्होंने हिमालय, कश्मीर, नेपाल, सिक्किम, तिब्बत और ताशकंद जैसे पर्वतीय क्षेत्रों को कवर किया। यह यात्रा साल 1514 से साल 1519 तक चली और इसे पूरा होने में लगभग 5 साल लगे।
  • चौथी यात्रा->> में उन्होंने मक्का और मध्य पूर्व के अन्य स्थानों का दौरा किया और इसमें 3 साल लग गए।
  • पांचवी यात्रा – >> में उन्होंने दो साल तक पंजाब में संदेश फैलाया। ऐसा माना जाता है कि उन्होंने अपने जीवन के लगभग 24 वर्ष इन यात्राओं में बिताए और पैदल ही लगभग 28,000 किमी की यात्रा की।
गुरु नानक देव की शिक्षा <<<

उन्होंने लोगों को सिखाया कि भगवान तक पहुंचने के लिए हमें किसी अनुष्ठान और पुजारियों की आवश्यकता नहीं है। भगवान को पाने के लिए उन्होंने लोगों से भगवान का नाम जपने को कहा। उन्होंने लोगों को दूसरों की मदद और सेवा करके आध्यात्मिक जीवन जीना सिखाया।

उन्होंने उन्हें किसी भी तरह की धोखाधड़ी या शोषण से दूर रहने और एक ईमानदार जीवन जीने के लिए कहा। मूल रूप से, अपनी शिक्षाओं के माध्यम से उन्होंने नए धर्म यानी सिख धर्म के तीन स्तंभों की स्थापना की जिनका उल्लेख नीचे किया गया है:

नाम जपना:>> इसका अर्थ है भगवान के नाम को दोहराना और भगवान के नाम और उनके गुणों का अध्ययन करने के साथ-साथ गायन, जप और जप जैसे विभिन्न तरीकों से ध्यान के माध्यम से भगवान के नाम का अभ्यास करना।

किरत करणी: >> इसका सीधा सा मतलब है ईमानदारी से कमाई करना। उन्होंने उम्मीद की कि लोग गृहस्थों का सामान्य जीवन जीएं और अपने शारीरिक या मानसिक प्रयासों के माध्यम से ईमानदारी से कमाएं और हमेशा सुख और दुख दोनों को भगवान के उपहार और आशीर्वाद के रूप में स्वीकार करें।

वंद चकना:>>इसका सीधा सा मतलब है एक साथ बांटना और उपभोग करना। इसमें उन्होंने लोगों से अपनी संपत्ति का कुछ हिस्सा समुदाय के साथ बांटने को कहा। वंद चकना का अभ्यास करना सिख धर्म का एक महत्वपूर्ण स्तंभ है जहां हर सिख समुदाय के साथ अपने हाथों में जितना संभव हो उतना योगदान देता है।

गुरु नानक देव की रचनाये <<<

1-जपु जी
2-झूठी देखी प्रीत
3-को काहू को भाई
4-जो नर दुख में दुख नहिं मानै
5-सूरा एक न आँखिए
6-राम सुमिर, राम सुमिर
7-सब कछु जीवित कौ ब्यौहार
8-हौं कुरबाने जाउँ पियारे
9-मुरसिद मेरा मरहमी
10-काहे रे बन खोजन जाई
11-प्रभु मेरे प्रीतम प्रान पियारे
12-अब मैं कौन उपाय करूँ
13-या जग मित न देख्यो कोई
14-जो नर दुख में दुख नहिं माने
15-यह मन नेक न कह्यौ करे

गुरु नानक देव की मृत्यु<<<<

55 वर्ष की आयु के आसपास, नानक सितंबर 1539 में अपनी मृत्यु तक वहां रहते हुए करतारपुर में बस गए । इस अवधि के दौरान, वे अचल के नाथ योगी केंद्र और पाकपट्टन और मुल्तान के सूफी केंद्रों की छोटी यात्राओं पर गए ।

अपनी मृत्यु के समय तक, नानक ने पंजाब क्षेत्र में कई अनुयायियों को प्राप्त कर लिया था , हालांकि मौजूदा ऐतिहासिक साक्ष्यों के आधार पर उनकी संख्या का अनुमान लगाना कठिन है।
गुरु नानक ने भाई लहना को उत्तराधिकारी गुरु के रूप में नियुक्त किया , उनका नाम बदलकर गुरु अंगद रखा , जिसका अर्थ है “किसी का अपना” या “आप का हिस्सा”।

अपने उत्तराधिकारी की घोषणा करने के कुछ समय बाद, गुरु नानक की मृत्यु 22 सितंबर 1539 को करतारपुर में 70 वर्ष की आयु में हुई। गुरु नानक का शरीर कभी नहीं मिला।

श्रीराम के वंशज, गुरु नानक देव जी <<<

श्रीराम और नानक देव जी के बीच क्या रिश्ता है। सिख धर्म और हिंदू धर्म के बीच क्या संबंध है। हम सभी जानते हैं कि सिख धर्म हिंदू धर्म से ही निकली एक शाखा है। सिख धर्म के प्रवर्तक गुरु नानक देव जी हैं । श्रीराम का उल्लेख गुरुग्रंथ साहिब जी में कई बार आया है। राम नाम जप और राम नाम की महिमा का गुणगान सिख धर्म के सबसे पवित्र ग्रंथ गुरु ग्रंथ साहिब जी में किया गया है। अक्सर ये प्रश्न किया जाता है कि क्या गुरु नानक जी के राम दशरथ पुत्र राम हैं या फिर वो निराकार राम हैं जिनकी महिमा सिख धर्म में भी गाई गई है।

पिछले कुछ वर्षों से सिख धर्म और हिंदू धर्म के बीच मतभेद पैदा करने की कोशिश की जाती रही है, कुछ लोगों के अनुसार नानक के राम निराकार परब्रह्म हैं और उनका हिंदू धर्म के श्रीराम से कोई संबंध नहीं है। लेकिन कई ऐसे उल्लेख मिलते हैं जो गुरु नानक देव जी का संबंध दशरथ पुत्र श्रीराम से जोड़ते हैं।

सनातन धर्म में सूर्य वंश और चंद्र वंश का विशेष उल्लेख है। सूर्य वंश में जहां भगवान विष्णु ने मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के रुप में जन्म लिया, वहीं चंद्र वंश में भगवान विष्णु ने श्रीकृष्ण के रुप में जन्म लिया। इन दोनों ही वंशो में श्रीराम और श्रीकृष्ण के अलावा भी कई महान व्यक्तियों, राजाओं, संतों और मनीषियों ने जन्म लिया है। सूर्य वंश में ही मनु,ययाति, रघु, भगीरथ, दिलीप जैसे महान राजाओं ने जन्म लिया है। चंद्र वंश में नहुष, युधिष्ठिर, यदु जैसे महान राजाओं ने जन्म लिया है। इन दोनों ही वंशों ने अनेक ऐसी विभूतियों को जन्म दिया है जिन्होंने सनातन धर्म को मजबूत किया है।

राम के वंशज थे गुरु नानक <<<

जब -जब धर्म की हानि होती है और अधर्म का उत्थान होता है भारतभूमि में धर्म की बार- बार संस्थापना के लिए महान आत्माओं, साधुओं और ईश्वर ने अवतार लिया है। कलियुग में भी सूर्य वंश में एक ऐसे महान अवतारी आत्मा ने जन्म लिया, जिन्होंने सिख धर्म की स्थापना की। उन महान आत्मा का नाम था गुरु नानक देव जी।

कवि और सिख धर्म के संस्थापक नानक देव जी का <<<

नाम – नानक
सिख धर्म में नाम- गुरु नानक देव
निक नेम -बाबा नानक
पिता-मेहता कालूचन्द
माता- तृप्ति देवी
पत्नी -सुलखनी देवी
प्रसिद्द- सिख धर्म के संस्थापक
जन्म तारीख -15 अप्रैल 1469
जन्म स्थान -तलवण्डी गाँव , लाहौर ,पाकिस्तान
गृहनगर -तलवण्डी गाँव , लाहौर ,पाकिस्तान
मृत्यु तिथि -22 सितंबर 1539
मृत्यु का स्थान- करतारपुर , पाकिस्तान
स्मारक समाधि -करतारपुर , पाकिस्तान
उम्र -70 वर्ष (मृत्यु के समय )
कार्यकाल – साल 1499–साल 1539 तक
धर्म -सिख
जाति – खत्रीकुल
नागरिकता -सिख
पूर्वाधिकारी – स्वम जन्म से
उत्तराधिकारी – गुरु अंगद देव
वैवाहिक स्थिति -शादीशुदा

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